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. "कोई नहीं है"
जहां पर ख्वाब लाया है, वहां कोई नहीं है
या कहिए यूं के सोचें तो, जहां कोई नहीं है
जमीन पर पैर फिसले हैं, निगेहबां आस्मां से भी,
यह कैसी इश्क की हद है, निशां कोई नहीं है
जहां पर ख्वाब लाया है......
हरफ दर हफ॔ भी, स्याही से लिखे उड़ रहे हैं,
हमें अपने भी होने का, गॖमंॎकोई नहीं है .
जहां पर ख्वाब लाया है......
यहां है कोई गर, हम पूछते हैं अगले ही पल फिर,
सदाएं लौट आती है, यहां कोई नहीं है.
जहां पर ख्वाब लाया है......
टंगे है धुंध की मानिन्द, हमारे अक्श ही हम में,
चुभे है नक्श सीने में, धुंआं कोई नहीं है.
जहां पर ख्वाब लाया है......
परस्तिश को तमन्नायें भी, अब बेदम नहीं करती,
खुदाओं के भी यां मंजर, फुगां कोई नहीं है.
जहां पर ख्वाब लाया है वहां कोई नहीं है
या कहिए यूं के सोचें, तो जहां कोई नहीं है.
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