खिड़की से चाय की खुशबू आ रही थी। इसमें डाली गई इलायची ने तो वातावरण को और भी सुगंधित कर दिया। खुशबू सलमा के घर से आ रही थी। सलमा और रानी के घर एक दूसरे से सटे हुए थे। जाहिर है हवा के रुख के हिसाब से घर के चूल्हों की महक इधर से उधर आती जाती रहती थी। पिछले कुछ दिनों से उनके बीच चुप्पी छाई हुई थी। आपसी बोलचाल बन्द थी। मामूली-सी बात पर दोनों झगड़ पड़ी। उनके बच्चे किसी बात पर लड़ गए। बस इसी बात को लेकर वे दोनों भी झगड़ पड़ी।
बहुत दिन हो गए। दोनों से अब यह चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। कभी सलमा तो कभी रानी चाहती कि किसी भी बहाने से एक दूसरे से बात कर ली जाए।
रानी देर तक बरामदे में टहलती रही। सोच रही थी कि सलमा बाहर दिखाई दे तो कहूं चाय की खुशबू अच्छी आ रही है। एक कप मेरे लिए भी ला दे। उबल रही चाय के साथ सलमा भी सोच रही थी कि रानी को किस तरह चाय के लिए पूछूं। तभी वह खाली डिब्बा लेकर रानी की तरफ लपकी।
"सुनो! चाय में चीनी कम पड़ गई। इस डिब्बे में डाल कर देना।"सलमा ने डिब्बा आगे करते हुए कहा। रानी को लगा जैसे किसी ने कानों में मिश्री घोल दी हो। कब से तरस रही थी। लगा जैसे सर पर से बहुत सारा बोझ हट गया।
रानी ने डिब्बा भर दिया। कहा-एक कप मुझे भी पिलाना। तू चाय बड़ी स्वादिष्ट बनाती है।
दोनों ने देर तक दीवार पर चाय के साथ जी भर कर बातें की। आज रिश्तों की कड़वाहट घुल गई।
तभी सलमा की बिटिया कहने लगी- अम्मा शक्कर का इतना बड़ा डिब्बा घर में भरा पड़ा है फिर रानी आंटी से क्यों मांग लिया। बिटिया समझ न पाई पर वे दोनों समझ गई कि रिश्तों में हमेशा ऐसे ही मिठास बना रहे ।