रमेश जी के घर नयी बहू आई। उसके पति रमेश सुबह जल्दी काम पर चले गए। वह चिंता में पड़ गई। पता नहीं सासू मां और बाबूजी का स्वभाव कैसा होगा। उनके लिए चाय नाश्ता कब बनाना पड़ेगा। स्नान का पानी भी तो गर्म रखना होगा। उनके स्वास्थ्य का खयाल किस तरह रखना होगा। समय से दवा देनी होगी। बात बात पर गुस्सा तो नहीं होंगे। कहते हैं सास और बहू की बनती नहीं है। उनमें खट-पट होती रहती है।पता नहीं रिश्तों में सामंजस्य रख पाऊंगी या नहीं। आने जाने वाले मेहमानों का भी तो ख्याल रखना होगा। कम से कम तीन वक्त का खाना। फिर सारे घर का काम। झाड़ू पौंछा और ढ़ेर सारे बर्तन। सबके कपड़े भी तो धोकर इस्त्री करने पड़ेंगे। वह घबरा गई। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। दिन गुजरा। फिर सुबह हुई। पति काम पर चले गए।
वह अपने कमरे में झाडू लगा रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। देखा - सास मुस्कराते हुए चाय और नाश्ता लिए खड़ी थी। कहने लगी- बहू, घबराने की जरूरत नहीं। तुम हमारी बेटी हो। यह घर तेरा ही है। माना घर में बहुत सारे काम है। हम भी कामों में हाथ बंटा लेंगे।कहकर उसके सिर पर हाथ रखा।
बाबूजी बाहर लॉन में बिखरे पड़े कचरे को डिब्बे में डाल रहे थे। कहने लगे-अभी हम इतने भी बूढ़े नहीं हुए कि अपनी बेटी का खयाल न रख सकें।
बहू मन ही मन मुस्कुरा दी। उसके तो जैसे पंख लग गए हों।वह बहुत खुश थी कि उसे अपने ही घर में मां और पिता जी मिल गये। और वे तीनों एक साथ चाय नाश्ता करने लगे।
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