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रुद्रनाथ जहाँ होते हैं भगवान शिव के मुख के दर्शन

23 मई 2023

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अभी तक आपने भगवान शिव के दर्शन के लिये जितनें भी तीर्थ स्थलों की यात्रा की होंगी, यहाँ तक कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भी, आपको भगवान के स्व्यंभू लिंगों के ही दर्शन हुए होंगे। जिनमें से अधिकतर कई स्थानों में आपने शिवलिङ्गों पर कुमकुम और चंदन से बनाई हुई मुखाकृति ही देखी होंगी ।


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 देवभूमि उत्तराखंड़ के पंच केदारों में से एक चतुर्थ केदार रुद्रनाथ, संपूर्ण विश्व में भगवान शिव का एकमात्र ऐसा धाम है, जहाँ भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं। 

स्कंद पुराण के केदार खंड में उल्लेख मिलता है कि,द्वापर काल में भगवान शिव ने पाण्डवों को यहीं पर अपने मुख के दर्शन दिये थे। यहाँ पर तभी से भगवान शिव का एकानन रूप के साथ मुखाकृति वाला स्वयंभू शिवलिङ्ग हैं। 

इसके अतिरिक्त केवल दो अन्यत्र स्थानों, नेपाल के पशुपतिनाथ तथा इंडोनेशिया में ही भगवान शिव के चतुरानन स्वरूप  तथा पंचानन स्वरूप वाले स्वयंभू लिङ्ग  हैं।


जानें क्या हैं पंच केदार ? और शिव की लीला

 पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में अपने ही स्वजनों की हत्या के कारण पाण्ड़व गोत्रहत्या के पाप से ग्रसित हो गये थे । गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति के लिये भगवान श्री कृष्ण ने पाण्ड़वों को भगवान शिव की शरण में जाकर उन्हें प्रसन्न करने की सलाह दी। श्रीकृष्ण की सलाह पर पाण्ड़व शिव के दर्शन के लिए काशी गये। 

भगवान शिव महाभारत युद्ध के कारण पाण्ड़वों से नाराज थे और उन्हें दर्शन नही देना चाहते थे। पाण्डवों को अपने समीप आता देख शिव काशी से अंतर्ध्यान होकर हिमालय के केदार क्षेत्र में चले गये। पाण्ड़व भी उनका पीछा करते हुए हिमालय पर पहुँच गये। 

 पाण्डवों को अपने पीछे आता देख शिव ने  बैल का रूप धारण कर लिया। भीम ने बैल के रूप में शिव को पहचान दिया। भीम जैसे ही शिव को पकड़ने लगे शिव जमीन में घुस गये। भीम के द्वारा शिव को पकडने के दौरान बैल रूपी शिव का धड़ वाला भाग भूमि में ऊपर ही रह गया। शिव का धड़ वाला भाग जिस स्थान पर रहा वह प्रथम केदार कहलाया। यही केदार द्वादश ज्येतिर्लिंगों में केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।

  शिव को ढूडंने के क्रम में हिमालय के जिन पाँच स्थानों पर पाण्ड़वों को शिव के जिन पाँच अंगों के दर्शन हुए वहाँ पर पाण्ड़वों द्वारा भगवान शिव के मंदिरों की स्थापना की गई। केदार क्षेत्र में स्थित होने के कारण  ये स्थान पंच केदार कहलाये।  

पांडवों को इस प्रकार से दर्शन देने के विषय में शिव व पार्वती के मध्य हुए संवाद का वृतांत स्कंद पुराण में इस प्रकार मिलता है। जब शिव पार्वती को बताते हुए कहतें हैं 

पूर्वं हि पाण्डवैः सर्वै गोत्रहत्यासमन्वितैः। केदारेश इति ख्यातिस्त्रिषु लोकेषुः मुक्तिदः। अधोमार्गेण देवेशि मन्मुखं तु महालये।।

पूर्व में जब पाण्ड़व गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए मेरी शरण में आये तो मेरे केदार क्षेत्र ही में उन्हें गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति मिली। मेरा यह मुक्ति दाता केदार देश तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। अधोमार्ग से मेरा मुख महालय में है। 

 पंच केदार 

पंच केदारों में प्रथम केदार, केदारनाथ है जहाँ  सर्वप्रथम पाण्डवों को भगवान शिव के धड़ के दर्शन हुए थे। इसके पश्चाद् क्रमानुसार द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर में मध्य भाग(नाभि) के तथा तृतीय केदार तुंगनाथ में भुजा और चतुर्थ केदार रुद्रनाथ में मुख तथा पंचम केदार कल्पेश्वर में शिव की जटा के दर्शन हुए थे। 

इन पंच केदारों में से तीन केदार, केदारनाथ,मध्यमहेश्वर तथा तुंगनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में तथा दो केदार रुद्रनाथ और कल्पेश्वर चमोली जनपद में स्थित हैं।  

चतुर्थ केदार रुद्रनाथ 


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 शिव के पंच केदारों में यही वह चौथा केदार है, जहाँ पाण्ड़वों को शिव के मुख के दर्शन हुए थे। यहाँ पर एक प्राकृतिक गुफा में शिव का वही पाण्डवों के समय का एकानन स्वरूप वाला श्यामवर्णी मुख लिंग विराजमान है। 

यह समुद्र तल से 2289 मी.की ऊँचाई पर हिमालय के खुबसूरत बुग्यालों ( हिमालय में घास के मैदान) के मध्य चमोली जनपद मुख्यालय गोपेश्वर से 22 कीमी. की दूरी पर स्थित है।  

इस स्थान के बारे में स्कंद पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि, यहीं पर अंधकासुर दैत्य के अत्याचारों से पीड़ित देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति की थी। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अंधकासुर के अत्याचारों से मुक्त कराने का वचन देते हुए इस स्थान को अपना सबसे प्रिय स्थान बताते हुए सभी देवताओं से कहा था,  

मामेव शरणं प्राप्ता ह्यन्दकस्य भयार्दिताः। गुरोस्तव महापीठेऽस्मिन रूद्रालये प्रिये। इदं प्रियतरं स्थानं ममास्त्येव न संशयाः। अतः समग्रभावेन पार्वत्या च गणै सह।। 

निसंदेह यह स्थान मुझे अत्यंत प्रिय है, अतः आपके स्नेह के कारण समग्रभाव से मैं और पार्वती अपने गणों के साथ सदा यहाँ निवास करेंगे। मुझे इस स्थान से बढ़कर कोई दूसरा स्थान  प्रिय नही है। 

 

इस स्थान के विषय में यह भी मान्यता है कि, यहीं पर भगवान शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र की भी उत्पति की थी। वीरभद्र को इस क्षेत्र में शिव के मंत्री के रूप में पूजा जाता हैं। 

धाम में अन्य तीर्थ

यहाँ मंदिर परिसर में पाण्ड़वों और वनदेवियों के भी छोटे--छोटे मंदिर हैं। धाम में पुराणों में वर्णित पवित्र सरस्वती सरोवर, मानस सरोवर, नारद कुंड और वैतरणी नदी आदि तीर्थ स्थल भी हैं।

वैतरणी नदी

 स्कंद पुराण में यहाँ की वैतरणी नदी के बारे में उल्लेख मिलता है कि, इसमें पित्रों को तर्पण देने से उन्हें सब प्रकार की तृप्ति प्राप्त होती है और यहाँ पर किया गया एक पिंडदान गया में किये गये हजार पिंडदानों के बराबर है। 

सरस्वती कुंड

इसी प्रकार यहाँ के सरस्वती कुंड के विषय में भी स्कंद पुराण में बताया गया है कि, इस सरोवर में मृकुंड नाम का एक मत्स्य हजारों वर्ष से तपस्यारत है। कृष्ण पक्ष की मंगलवार को पड़ने वाली महाचतुर्दशी ((महाशिवरात्रि) के दिन यह अपने परिवार के साथ इस कुंड़ में विचरण करता हुआ दिखाई देेता है। 

तिर्थाटन के साथ ही यदि आप मानसिक शांति पाने हेतु ध्यान के लिए प्रकृति के शांत वातावरण में किसी जगह की तलाश में भी हैं तो, आपको इस तीर्थ स्थल की यात्रा जरूर करनी चाहिए।यहाँ के शांत वातावरण में प्रकृति की सुरम्य वादियों तथा नैसर्गिक छटा के बीच भगवान के दिव्य स्वरूप वाले अलौकिक विग्रह के समक्ष ध्यान करने पर दिव्य आध्यात्मिक अनुभूति होेती है। 

प्राकृतिक छटा 


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यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं और प्रकृति के विविध रूपों का आनंद लेना चाहते हैं तो निसंदेह यहाँ आप स्वयं को प्रकृति के मध्य पायेंगे।एक बार यहाँ की यात्रा करने के उपरांत आप हर बार यहाँ आने से खुद को रोक नही पायेंगे। 

भगवान शंकर के इस कथन  "निवत्स्यामि सदा देवा युष्माकं प्रीतिकारणात्।अस्मात्स्थानान्न कुत्रापि स्थानं प्रियतरं मम।।" से ही समझा जा सकता है कि, जिसे वह स्वयं अपना आलय बताते हुए कहते हैं, मुझे इस स्थान से बढ़कर कोई और दूसरा स्थान प्रिय नही है। वह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य और नैसर्गिक छटा से भरपूर कितना रमणीक होगा। 


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यहाँ हिमालय के विहंगम दृश्यों के साथ ही प्रकृति के सभी रूपों के भी दर्शन होते हैं। अधिकतर कपाट खुलने के समय यहाँ के बुग्याल वर्फ से ढ़के रहते है। लेकिन सितंबर माह तक आते--आते ये बुग्याल, सेमरू (रोडोडेंड्रान) और विविध प्रकार के दुर्लभ प्रजाति के फूलो से भरकर यहाँ के परिदृश्य में चारों ओर इंद्रधनुषी छटा विखेर देते है।

पैदल मार्ग में पनार बुग्याल और 14000 फीट की ऊँचाई पर स्थित पित्रधार की चोटी से बहुरंगी फूलों से शरोबार बुग्यालों के बीच से सामने हिमालय की नंदा देवी और त्रिशूल पर्वत की चोटियों के साथ पार्श्व में नीचे एक ओर अनुसूया आश्रम और दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के दोनों किनारों पर पहाड़ों में ऊपर से नीचे मीलों दूर- दूर तक फैले गाँवों के विहंगम दृश्यों को निहारना रोमांचित कर देता हैं।

 इस संपूर्ण परिदृश्य को देखकर ऐसा लगता है मानो कुदरत ने अपने हर अंग को यहाँ पर  एक ही कैनवास पर उकेर दिया हो। यहाँ आप ड्राइंग रूम में टंकी तस्वीर पर बने झरने, पहाड़, नदी,जंगल,बादल और गाँवों के संपूर्ण दृश्यों के बीच खुद को पाते हैं।

 कब जायेंः- 

यहाँ के कपाट प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की संक्राँति से कार्तिक माह की संक्राँति यानि मई के तीसरे सप्ताह से अक्टुबर माह के मध्य तक श्रद्धालुओं के लिये खुले रहते है। यहाँ आने का सर्वोत्तम समय  अगस्त से सितंबर माह के मध्य रहता है। इस दौरान यहाँ प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है।  मौसम साफ रहने से चारों ओर खिले फूलों के बीच से हिमालय की बर्फ से ढ़की नंदादेवी और त्रिशूल पर्वत श्रेणियों का भी दीदार हो जाता है। 

 कैसे पहुँचें

यहाँ पहुँचने के लिये आपको सबसे पहले बस मार्ग से गोपेश्वर पहुँचना होता है। गोपेश्वर देश की राजधानी दिल्ली से 402 कीमी. और अन्य प्रमुख नजदीकी शहरों, देहरादून से 264 कीमी. और हरिद्वार से 250 कीमी. तथा ऋषिकेश से 228 कीमी. की दूरी पर है। यहाँ से नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट 240 कीमी. की दूरी पर है। नजदीकी रलवे स्टेशन देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश हैं।

 गोपेश्वर से रूद्रनाथ तक पहुँचने के लिये पहले 4 कीमी. की दूरी पर स्थित सगर गाँव तक वाहन से पहुँचना होेता है। यहाँ से आगे 18 कीमी. की दो दिन की यात्रा पैदल तय करनी होती है। पैदल चलने में अक्षम व्यक्ति सगर से घोड़े भी करवा सकते है। ठहरने के लिए गोपेश्वर में हर बजट के होटल हैं। धाम सहित पैदल मार्ग के पढ़ावों में यात्रियों के ठहरने के लिये टेंट तथा ढ़ाबे भी हैं।

एक दूसरा मार्ग गोपेश्वर से ही 12 कीमी. दूरी पर स्थित मंड़ल कस्बे से होकर भी जाता है। इस मार्ग से सती माँ अनुसूया तथा अत्रिमुनि आश्रम के साथ ही पहाड़ी से झरना बनकर गिर रही अमृत गंगा का दिलकश नजारा भी देखने को मिलता है। इस मार्ग से जाने के लिये आपको गाईड करना होता है। मंडल में स्थानीय गाइड मिल जाते हैं।

इस यात्रा लिये एक अन्य मार्ग बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर जोशीमठ से 13 कीमी. पहले हेलंग बस्ती से अलकनंदा नदी को पार कर उर्गम गाँव से होकर भी जाता है। उर्गम तक वाहन से जाया जा सकता है। उर्गम में आप पंचम केदार कल्पेश्वर के दर्शन भी कर सकते हैं। जो यहाँ से 3 कीमी. आगे मोटर मार्ग से 50 मी. की ही दूरी पर है। यहाँ पर ठरहने के लिए गेस्ट हाउस और होम स्टे भी  हैं। 

उर्गम से लगभग 45 कीमी. पैदल चलकर दो दिन में रूद्रनाथ पहुँचा जा सकता है। इस मार्ग में आप भोजपत्र के जंगलों से होते हुए बंशी नारायण तथा शिव गण बीरभद्र के भी दर्शन कर सकते है। दुर्गम तथा लंबा होने के कारण इस मार्ग का प्रयोग ट्रैकिंग के शौकीन ही अधिक करते हैं। बिना गाईड के यहाँ से यात्रा करना जोखिम भरा हो सकता है। उर्गम में गाइड़ के साथ ही पंच केदार ट्रैक के लिए घोड़े और पोर्टर भी मिल जाते हैं। 

अन्य नजदीकी तीर्थ स्थल

यदि आपके पास समय का अभाव नही है और छुट्टियां भी पर्याप्त हैं, तो आप एक सप्ताह में गोपेश्वर से रुद्रनाथ के साथ ही दो अन्य केदारों, कल्पेश्वर और तुंगनाथ तथा चोप्ता जिसे गढ़वाल का स्विजरलैंड भी कहते हैं के साथ ही सती माता अनुसूया के भी दर्शन कर सकते हैं।

अनुसूया आश्रम

गोपेश्वर से 11किमी.मंडल तक वाहन से और वहाँ से 4.5किमी.पैदल यात्रा कर पहुँचा जाता है। यहाँ से रुद्रनाथ के लिए भी मार्ग जाता है। 

 माता अनुसूया के मंदिर में निःसंतान दंपति पुत्र की कामना का आशिर्वाद मांगते है। मनोकामना पूर्ण होने पर पुनः यहाँ के दर्शन करने की मान्यता है। पुराणों मेें उल्लेख मिलता है कि यहीं पर एक बार सती अनुसूया ने त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अपने तपोबल से बालक बना दिया था।

गोपेश्वर

पहाड़ का एक सुंदर शहर होने के साथ ही चमोली जनपद का मुख्यालय भी है। यह बद्रीनाथ तथा केदार नाथ यात्रा पथ का मध्य स्थल भी है। यहाँ पर उत्तराखंड के सबसे बड़े मंदिरों में से एक भगवान गोपीनाथ का विशाल मंदिर भी है। 


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गोपीनाथ मंदिर के विषय में भी स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि,भगवान शिव यहाँ पश्वेश्वर नाम से विराजमान हैं। मंदिर प्रांगण में एक 16 फीट ऊँचा त्रिशूल भी है। जिस पर नाग वंशीय शाषक गणपति नाग और नेपाल के शासक अशोक चल्ल के लेख भी उत्कीर्ण हैं।

 गोपेश्वर में आप नवीं सदी में निर्मित वैतरणी मंदिर समूहों के भी दर्शन कर सकते हैं। वैतरणी के बारे में स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि ,भगवान शंकर ने यहीं पर कामदेव की पत्नी रति की तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिये थे। यहाँ पर शिव रतीश्वर नाम से प्रतिष्ठित हैं । 

यात्रा की तैयारियाँ 

यहाँ मौसम पल-पल बदलता रहता है। गर्मियों के मौसम में भी अच्छी खासी ठंड होती है। ऐसे में गर्म कपड़े, बरसाती  और रैनकोट भी साथ में रखें। पैदल मार्ग में विद्युत प्रकाश की सुविधा नहीं है।  मोबाइल चार्ज के लिये पावर बैंक तथा टार्च भी साथ में रहेगा तो सुविधा रहेगी। दुर्गम क्षेत्र व अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण आवश्यक दवाइंयाँ  भी साथ में रखें।

लेख में शामिल छायाचित्र साभार हरीश भट्ट

विनय सेमवाल




  

 

 

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