*सलीका*
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*किसी ने खूब कहा बातहि हाथी और बातहि हाथी पाँव । बात करने की तरीके से ही आप पूरा का पूरा हाथी पा सकते है और* *बात करने की तरीके से हाथी के पैरो हाले कुचले भी जा सकते है। बात इस पर निर्भर नहीं करती कि कौन सी बात आप कह रहे है बल्कि बात आप किस तरीके से कर रहे है यह महत्वपूर्ण होता है बात करने का सलीका अपने ही सोच की एक ऊपज है। यह सकारात्मक व नकारात्मक दोनो ही हो सकती* है। *सकारात्मक सोच हमारे ब्यवहार -कुशलता और बात करने की सलीके को और प्रभावशाली व ओजपूर्ण बनाती है जबकि दूसरी ओर नकारात्मक सोच हमारी प्रभावशीलता, रचनात्मकता, व्यवहार - कुशलता तथा बात करने की सलीके निषप्रभावी तथा कमजोर बनाती है। बात करने की सलीका तथा सफलता दोनो का गहरा संबंध है। जिसकी उपस्थिति रोजगार पाने से लेकर अपने निजी व* *सार्वजनिक संबंधों को सफलता पूर्वक निर्वहन करने में देखा जा सकता है। इसकी महता यही नही बल्कि स्वास्थ्य में भी लागू होता है "क्रिया की प्रतिक्रिया " ।। *अर्थात प्रत्येक किया की एक प्रतिक्रिया होती है। इसका मतलब मतलब हुआ कि जब हम गुस्से में किसी पर बरसते हैं तो फलस्वरूप या प्रति क्रिया स्वरूप हम भी खिन्न व अंदर से असहज महसूस करते है जिसका असर हमारे सीधा स्वास्थ्य पर पड़ता है। आधुनिक युग इसका* *जीता-जागता उदाहरण है।*
*विनोद पाण्डेय "तरु"*
भारत खंड "जंबूदीप"