*परिवर्तन*
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*परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह एक निश्चित प्रक्रिया है। परिवर्तन विकास और बदलाव दोनों के लिए आवश्यक है। परिवर्तन* *सृजनशीलता की एक कड़ी है। कालान्तर में भौगोलिक वातावरण के बदलाव से डायना सोर जैसे विशालकाय जन्तु का विलुप्त होना परिवर्तन का एक वैज्ञानिक प्रमाण है। वैसे हमारे आस-पास व ब्रह्माण्ड मे रोज- नित कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है। लेकिन उसका हमें आभास नही होता या आभास " होने का प्रयास नही करते। मानव-जीवन में परिवर्तन किसी घटना की घटित होने से होता है। वैसे हमारे जीवन में बहुत सारी घटनायें होती है मानव- जीवन घटनाओं का समूह है।* *अधिकांत: घटनाओ से सीखने के बजाय कुछ देर या कुछ दिन याद करके भूल जाते हैं। इस प्रकार - कोई कान्तिकारी प्ररिवर्तन होने से वंचित रह जाता है। परिवर्तन को कुछ इस प्रकार से समझा जा सकता है। हममें से प्रत्येक ने कोई बृद्ध (बूढ़ा) व्यक्ति, सन्त या लाश देखा होगा। क्या कोई परिवर्तन हुआ, नही! कुछ देर शोक व क्षोभ व्यक्त करके फिर बिल्कुल सामान्य हो जाते है। लेकिन भगवान महात्मा बुद्ध के साथ क्या हुआ ?* *उन्होन पूरे जीवन मे मात्र एक बार वृद्ध सन्त, योगी व लाश दे खा और राज-पाट छोड़कर सन्यास धारण कर लिया। यह एक छोटी सी घटना उनको जिन्दगी के किस मोड से लाकर किस मोड़ पर खड़ा कर दिया जबकि उनके जन्म कुण्डली में चक्रवर्ती सम्राट बनने का योग था ।।*
*दूसरी बात उन दिनो की है जब पंडित जवाहर लाल नेहरू लंदन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे। उन्हें किताब पढ़ने की आदत भी और यह आदत उन्हें अपन पिता मोतीलाल नेहरू से विरासत में मिली थी। एक बार की बात है वे लाइब्रेरी में बैठे थे और इतफाक से उनके हाथ में "" एशिया एण्ड यूरोप "की पुस्तक लग गयी और उसको पड़ने लगे और उस पुस्तक को पड़ने के बाद उनका मन राजनीति की तरफ बढ़ने लगा और वे उसमें रूचि लेने लगे। इससे पहले उनका राजनीत में बिल्कुल रुचि नही। श्री। एक पुस्तक में उनकी काया पलट दी और अंतत: भारत के प्रथम प्रधान मंत्री बन कर लगभग कई वर्षो तक शासन की। अतः परिवर्तन स्वीकार कर भविष्य की रूपरेखा तैयार करने में लगे जाये ।। यही काल और परिस्थित की माँग होती हैं ।।*
*विनोद पाण्डेय " तरू "**
भारत खंड "जंबूदीप"