shabd-logo

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा') दूसरा भाग

21 जुलाई 2017

264 बार देखा गया 264
featured image

'काला अक्षर भैंस बराबर' भीमा के लिए, टिका दिए अँगूठे साहूकार के कहने पर 'कोरी भूमि' पर, क्या पता था ? ये कर्ज़ नहीं चलनी ले ली रेत टिकाने के लिए। घर लौटा मांचे पर बैठकर पसीना पोंछने लगा कहते हुए ,अरे सुनती है 'नटिया' की माँ पैसे मिल गए, चलो एक चिंता दूर हुई। 'कम्मो' बोली -अरे जी ! उधार तो ले लिए ,साहूकार के पैसे कैसे चुकता करोगे ? तूं चिंता मत कर ! कुछ न कुछ हो जायेगा , धीरे -धीरे दे दूँगा।

कम्मो बड़बड़ाती हुई पास के रसोई में चली गई ,चूल्हे पर पतीला रखकर ,मुँह से आग जलाने लगी ,धुआं आँखों में लगने पर खांसते हुए ,बोली क्यूँ जी आज क्या बनाऊँ ,आलू -प्याज है घर में खाली ! रसा बना दूँ और लिट्टी सेंक दूँ ? बच्चे तो सो गए।

भीमा प्रेम जताता हुआ बोला -अरे भागवान जो चाहे बना दे ! तेरे हाथों से ज़हर भी अच्छा लगता है ,वैसे भी हमारे भाग्य में इच्छाओं का कोई महत्व नहीं ,दूसरों की इच्छाओं पर पलना ही हमारा जीवन है ,कहते हुए भीमा की आँखें भर आईं ,कम्मो भी अपने आप को रोक न सकी भीमा से लिपट कर रोने लगी ,सांत्वना तो दोनों एक दूसरे

को दे रहे थे किन्तु रो अपनी बदहाली पर रहे थे।

रात हो चली थी गली में कुत्ते के रोने की आवाज़ जैसे रात के सन्नाटे को मानो चीर रही थी ,झींगुर की आवाज रात में संगीत घोल रही थी ,घर में सारे लोग सोए पड़े थे। रात के दूसरे पहर घर में कुछ हलचल हो रही थी तभी कम्मो की नींद खुली उसने भीमा को जगाया। किन्तु भीमा गहरी नींद में था ,कहा -अरे भागवान सोने दे मुझे ! कम्मो उठी और रसोई की तरफ गई जहाँ वह दृश्य देखकर उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं ।

लोहे का पुराना संदूक खुला पड़ा था ! लगा जैसे किसी ने कुछ ढूढ़ने की कोशिश की हो ,कपड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे ,कम्मो यह सब देखकर शोर मचाने लगी। भीमा नींद से जगा और रसोई की तरफ भागा जहाँ कम्मो सर पर हाँथ रखकर ,बिलख-बिलख कर रो रही थी ,भीमा को समझने में देर न लगी कि भाग्य उसके साथ आँख मिचौली खेल रहा था ,कर्ज़ लिए सारे पैसे उसने कम्मो को संभाल कर रखने को दिये थे जिसे उसने संदूक में रखा था। कहते हैं समस्यायें अकेली नहीं आतीं झुण्ड में चलना उनकी फ़ितरत होती है।...................तीसरे भाग की प्रतीक्षा करें


''एकलव्य''










ध्रुव सिंह -एकलव्य- की अन्य किताबें

1

"बिम्ब सा !" 'कविता'

11 मई 2017
0
3
2

बिम्ब सा !दिखता हैमुझको मन के कोनों में अभी कुछ नहीं,ये भ्रम है ! मेरा वेदना ! मुझमें कहीं संभवतः ! हताशा होगी ये तोड़ती ! हिम्मत मेरीअर्जित नहीं जो कर सका !

2

"चरखा" 'कविता'

15 मई 2017
0
2
3

हे ! वरदानीतुम आनबसो !मेरे अंदर वो प्राण भरो ! कायर होता,मैंमन ही मनवीर सा तुमउत्कर्ष भरो ! हे ! मानव रक्षकअभिमानीविश्वास भरो !आभास भरो ! चित्त को पावन अब कर दो ! तुम अमृत वाणी ! कुछ कहके तुमजीवन का मार्गप्रशस्त्र करो !हे ! वरदानीतुम आनबसो !मेरे अ

3

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "दिवास्वप्न"

30 मई 2017
0
1
2

"दिवास्वप्न" मैं सदैव विचार करता, कि ये दिवास्वप्न है क्या बला ? किन्तु जीवन के आज तक के अनुभव मुझे ये बताने लगे हैं कि हमारा कर्महीन होकर,अत्यधिक पाने की कल्पना का दूसरा नाम 'दिवास्वप्न' है।''एकलव्य"

4

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "दुःख"

31 मई 2017
0
0
0

"दुःख" "अपूर्ण इच्छाओं की सूक्ष्म , रंध्रयुक्त पेटिका है जो समय-समय पर रिसती रहती है , निकलती इच्छायें दुःख रूपी अनुभव में परिणीत होती हैं""एकलव्य

5

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "क्रोध"

1 जून 2017
0
1
0

"क्रोध" "हमारे शरीर में उत्पन्न क्षणिक विकृति मात्र है, जो आवेग के रूप में प्रस्फुटित होती है, दिशाविहीन होना इसका विशिष्ट लक्षण है जो हमारे मस्तिष्क को क्षणभर के लिए शक्तिहीन बना देती है" "एकलव्य"

6

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "मृत्यु"

2 जून 2017
0
1
2

"मृत्यु" "नवीन जीव संरचना की उत्पत्ति का उद्देश्य ,प्रकृति के परिवर्तन का सन्देश जो सारभौमिक सत्य है"

7

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा' )

8 जुलाई 2017
0
4
0

वह आज भी उन्हीं सन्नाटों में देखता है, कुछ सोचता है ,पैरों में कीचड़ सी मिट्टी मानों उसके जेवर हों कंधे पर रखा मैला अंगोछा जिससे बार-बार अपने पसीनों को पोछता है,घुटने तक पहनी धोती संभवतः जिसका रंग उजला रह

8

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा') दूसरा भाग

21 जुलाई 2017
0
1
1

'काला अक्षर भैंस बराबर' भीमा के लिए, टिका दिए अँगूठे साहूकार के कहने पर 'कोरी भूमि' पर, क्या पता था ? ये कर्ज़ नहीं चलनी ले ली रेत टिकाने के लिए। घर लौटा मांचे पर बैठकर पसीना पोंछने लगा कहते हुए ,अरे सुनती है 'नटिया' की माँ पैसे मिल गए, चलो एक चिंता दूर हुई। 'कम्मो'

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए