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परिचय : ध्रुव सिंह "एकलव्य''उपनाम : 'एकलव्य' ( साहित्य में )जन्मस्थान : वाराणसी 'काशी' शिक्षा : विज्ञान में परास्नातक उपाधि सम्प्रति : कोशिका विज्ञान(आनुवांशिकी ) में तकनीकी पद पर कार्यरत ( संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ) लख़नऊ ,उत्तर प्रदेश ,भारत साहित्य क्षेत्र : वर्तमान में kalprerana.blogspot.com नाम से ब्लॉग का संचालन एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में हिंदी कवितायें प्रकाशित। 'अक्षय गौरव' पत्रिका में लेखक

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"शून्य" मेरे 'अंतर्मन' में मचे 'अंतर्द्वंद' का परिणाम है

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"शून्य" मेरे 'अंतर्मन' में मचे 'अंतर्द्वंद' का परिणाम है

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''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा') दूसरा भाग

21 जुलाई 2017
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'काला अक्षर भैंस बराबर' भीमा के लिए, टिका दिए अँगूठे साहूकार के कहने पर 'कोरी भूमि' पर, क्या पता था ? ये कर्ज़ नहीं चलनी ले ली रेत टिकाने के लिए। घर लौटा मांचे पर बैठकर पसीना पोंछने लगा कहते हुए ,अरे सुनती है 'नटिया' की माँ पैसे मिल गए, चलो एक चिंता दूर हुई। 'कम्मो'

''वेदना'' ( समाज को दर्पण दिखाती एक 'कथा' )

8 जुलाई 2017
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वह आज भी उन्हीं सन्नाटों में देखता है, कुछ सोचता है ,पैरों में कीचड़ सी मिट्टी मानों उसके जेवर हों कंधे पर रखा मैला अंगोछा जिससे बार-बार अपने पसीनों को पोछता है,घुटने तक पहनी धोती संभवतः जिसका रंग उजला रह

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "मृत्यु"

2 जून 2017
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"मृत्यु" "नवीन जीव संरचना की उत्पत्ति का उद्देश्य ,प्रकृति के परिवर्तन का सन्देश जो सारभौमिक सत्य है"

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "क्रोध"

1 जून 2017
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"क्रोध" "हमारे शरीर में उत्पन्न क्षणिक विकृति मात्र है, जो आवेग के रूप में प्रस्फुटित होती है, दिशाविहीन होना इसका विशिष्ट लक्षण है जो हमारे मस्तिष्क को क्षणभर के लिए शक्तिहीन बना देती है" "एकलव्य"

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "दुःख"

31 मई 2017
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"दुःख" "अपूर्ण इच्छाओं की सूक्ष्म , रंध्रयुक्त पेटिका है जो समय-समय पर रिसती रहती है , निकलती इच्छायें दुःख रूपी अनुभव में परिणीत होती हैं""एकलव्य

"शून्य" 'आत्म विचारों का दैनिक संग्रह' "दिवास्वप्न"

30 मई 2017
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"दिवास्वप्न" मैं सदैव विचार करता, कि ये दिवास्वप्न है क्या बला ? किन्तु जीवन के आज तक के अनुभव मुझे ये बताने लगे हैं कि हमारा कर्महीन होकर,अत्यधिक पाने की कल्पना का दूसरा नाम 'दिवास्वप्न' है।''एकलव्य"

"चरखा" 'कविता'

15 मई 2017
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हे ! वरदानीतुम आनबसो !मेरे अंदर वो प्राण भरो ! कायर होता,मैंमन ही मनवीर सा तुमउत्कर्ष भरो ! हे ! मानव रक्षकअभिमानीविश्वास भरो !आभास भरो ! चित्त को पावन अब कर दो ! तुम अमृत वाणी ! कुछ कहके तुमजीवन का मार्गप्रशस्त्र करो !हे ! वरदानीतुम आनबसो !मेरे अ

"बिम्ब सा !" 'कविता'

11 मई 2017
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बिम्ब सा !दिखता हैमुझको मन के कोनों में अभी कुछ नहीं,ये भ्रम है ! मेरा वेदना ! मुझमें कहीं संभवतः ! हताशा होगी ये तोड़ती ! हिम्मत मेरीअर्जित नहीं जो कर सका !

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