मैं सदैव विचार करता, कि ये दिवास्वप्न है क्या बला ? किन्तु जीवन के आज तक के अनुभव मुझे ये बताने लगे हैं कि हमारा कर्महीन होकर,अत्यधिक पाने की कल्पना का दूसरा नाम 'दिवास्वप्न' है।
''एकलव्य"
30 मई 2017
मैं सदैव विचार करता, कि ये दिवास्वप्न है क्या बला ? किन्तु जीवन के आज तक के अनुभव मुझे ये बताने लगे हैं कि हमारा कर्महीन होकर,अत्यधिक पाने की कल्पना का दूसरा नाम 'दिवास्वप्न' है।
''एकलव्य"
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परिचय : ध्रुव सिंह "एकलव्य''
उपनाम : 'एकलव्य' ( साहित्य में )
जन्मस्थान : वाराणसी 'काशी'
शिक्षा : विज्ञान में परास्नातक उपाधि
सम्प्रति : कोशिका विज्ञान(आनुवांशिकी ) में तकनीकी पद पर कार्यरत ( संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ) लख़नऊ ,उत्तर प्रदेश ,भारत
साहित्य क्षेत्र : वर्तमान में kalprerana.blogspot.com ना
'अक्षय गौरव' पत्रिका में लेखक
Dसत्य वचन
9 अगस्त 2017
जी एकलव्य -- बिलकुल सही कहा आपने -------- दिवास्वप्न अकर्मण्यता का दूसरा नाम है ------- जीवन की सार्थकता कर्मशीलता में है कर्महीनता में नहीं - -- क्योकि आँखों के सपने हाथों के कर्म से अस्तित्व में आते है -- मात्र आँखों में सजाकर रखने से नहीं -- सार्थक विचार है आपका --- बहुत शुभकामना --
31 मई 2017