वह आज भी उन्हीं सन्नाटों में देखता है, कुछ सोचता है ,पैरों में कीचड़ सी मिट्टी मानों उसके जेवर हों कंधे पर रखा मैला अंगोछा जिससे बार-बार अपने पसीनों को पोछता है,घुटने तक पहनी धोती संभवतः जिसका रंग उजला रहा होगा किसी ज़माने में ! वर्तमान में रंग का निर्धारण करना अपने आप को छलने जैसा प्रतीत होता है। एक छोटी सी बालिका उम्र लगभग आठ वर्ष न जाने किसे पुकार रही है बापू, ओ ! बापू तुम्हीं हो क्या? घर क्यूँ नहीं आते ?
वो अधेड़ सा मानव न जाने क्या सोचता हुआ वीरान उजड़े हुए खेतों से नज़र हटाकर बच्ची की तरफ देखता है मानो कोई अपरिचित हो ! जो उससे, उसके यहाँ एकांत बैठने की सफाई माँग रही हो ! चेहरे की वो झुर्रियां प्रतीत होता है वह पागल स्वयं से यह प्रश्न पूछ रहा हो ! वास्तव में वो यहाँ क्यों बैठा है ? क्या उसे जीवन में जीने का विश्वास खत्म हो गया है ,अथवा दुनिया से भरोसा उठ गया है कुछ क्षण नीले साफ आसमान की ओर देखता मानो कोई कहानी याद कर रहा हो !
ठाकुर देवी प्रसाद 'जमींदार' या यों कहें गाँव के मालिक भारत आजाद हो गया किन्तु इनकी जमींदारी वाली शान और शौक़त अभी भी बरक़रार !
हवेली के चबूतरे पर लठैतों का काफ़िला ,देवी प्रसाद का राजाओं की तरह दरबार लगाना,हनुमान ,दीना,रामू न जाने कितने इनके टुकड़ों पर पलने वाले गाँव के दबंग फिर मुखिया जी जो इनके दरबार की शोभा ,गॉंव का साहूकार ,पुजारी सभी नतमस्तक।
इनकी पुस्तैनी बग्घी जिस पर ये गॉंव में घूमा करते ,इनके लठैत लाठी के दम पर गरीब किसान ,मजदूरों को परेशान करते और ठाकुर साहब किसानों की आधी फसल अपने गोदामों में भिजवाते और हो भी क्यूँ न जागीरदार जो ठहरे।
भीमा की छोटी सी ज़मीन जिसके दम पर वह अपना परिवार पालता ,परिवार में उसकी बीबी ,तीन बच्चे एक गाय जिसका कुछ दिनों पहले स्वर्गवास हो गया। अब 'मनुष्य मरे तो मुसीबत नहीं होती' किन्तु गाय मरे तो गोहत्या ! अब क्या था इसका ख़ामियाज़ा तो भुगतना ही पड़ेगा ,ब्राह्मणों को भोजन ,दान-दक्षिणा दिए बिना आप इस पाप से नहीं बच सकते और बच भी गए तो तथाकथित विद्वानों के अनुसार स्वर्ग के दरवाज़े आप क्या आपके सम्पूर्ण कुटुम्ब के लिए बंद होंगे ! थक हार कर आपको नरक की ओर प्रस्थान करना ही होगा।
भीमा गौ हत्या के पाप से बचने के लिए साहूकार से उधार ले लिया। ......... शेष अगले अंक में
"एकलव्य"