हे ! वरदानी
तुम आन
बसो !
मेरे अंदर
वो प्राण
भरो !
कायर होता,मैं
मन ही मन
वीर सा तुम
उत्कर्ष भरो !
हे ! मानव रक्षक
अभिमानी
विश्वास भरो !
आभास भरो !
चित्त को पावन
अब कर दो ! तुम
अमृत वाणी ! कुछ
कहके तुम
जीवन का मार्ग
प्रशस्त्र करो !
हे ! वरदानी
तुम आन
बसो !
मेरे अंदर
वो प्राण
भरो !
हे ! काल के
अन्तर्यामी तुम
बनकर एक कीर्तिमान
रचो !
तुम सोये क्यूँ ?
रसातल जाकर
जग जाओ !
कुछ तो
कर्म करो !
ये धर्म बनाया
तूने क्यूँ ?
क्यूँ ? कर्म बनाया
इसको तूं !
मैं धर्म ढो रहा !
तेरे लिए
कुछ कर्म
कर रहा !
अपने लिए
बस पाने को !
छाया तेरी
बस गाने को !
माया तेरी
वे बना रहें
उल्लू ! मेरा
कुछ नचा रहें
चरखा ! तेरा
तूँ आँखें मूंदे !
बैठा है
तूं गूँगा बनकर
ऐंठा ! है
वे गला रहें हैं !
दाल अपनी
कुछ उड़ा रहें
लज्जा ! मेरी
वे कोंच रहें
सुईयां ! हरपल
वे नोंच रहें
इच्छाओं को
मैं खोज रहा !
आशा ओं को
मैं भंवर में
डूबता हूँ !
हरपल
एक जलन में
जीता हूँ !
पल -पल
हे ! वरदानी
तुम आन
बसो !
मेरे अंदर
वो प्राण
भरो !
"एकलव्य"