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"सामान"

23 नवम्बर 2020

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मेरी एकादशोत्तरशत काव्य रचना (My One Hundred eleventh Poem)

"सामान"

“घर-घर सामान भरा पड़ा है
हद से ज्यादा भरा पड़ा है
खरीद-खरीद के बटुआ खाली
खाली दिमाग में सामान भरा पड़ा है -१

हर दूसरे दिन बाहर जाना है
नयी-नयी चीजें लाना है
जरूरत है एक सामान की
ढोकर हजार सामान लाना है-२

अपने घर में जो रखा है
उसकी खुशी न करना है
पड़ोस के घर क्या आया है
उसे देख कर जलना है - ३

कम सामान से खुश ना रहना
बस सामान की सोचे रहना
टी वी प्रचार के कचड़े को
खाली दिमाग में भरते रहना -४

जरूरत क्या है पता नहीं
कितनी जरूरत पता नहीं
मन में आया तो लाना है
क्यों लाना है पता नहीं - ५

ना लाया तो दुख में रहना
इसी सोच में डूबे रहना
अपने मन की मानसिकता को
कम से कमतर आंके रहना -६

मन ही मन में बस यह कहना
क्या अभाव में जीते रहना
खूब कमाया किसके खातिर
यही सोच फिर घर को भरना -७

पड़ोस के घर में आंखे रखना
अपने घर में क्या है रखना
बेमतलब में हर घर जाकर
घर-घर की निगरानी करना -८

आज नया क्या आया है
एफ एम टी वी ने बतलाया है
मन को काबू में न रखकर
घर लाने का प्लान बनाया है -९

एक नहीं कई अलमारी हैं
सारी कपड़ों से भरी पड़ी हैं
फिर भी मन में एक बेचैनी
नया लाने को अड़ी-पड़ी है -१०

कपड़े माल से छांट के लाये
घर में आके फिर से छांटे
अपनी पसंद को लेकर उलझे
छांट-छांट के खुद को डाटें -११

एक बार जो कपड़े पहने
फिर उनका कुछ पता नहीं
कहाँ डले हैं कहाँ पड़े हैं
खुद में भूले कुछ खता नहीं । -१२

मान अब सामान हो गया
इंसान ही बेईमान हो गया
इच्छाओं का दास बनकर
खुद में ही बेजान हो गया । -१३

जीवन ही सामान हो गया
ढोना जीवन का काम हो गया
किसी ने कम तो किसी ने ज्यादा
इसी से उसका नाम हो गया । -१४

चाहे कितना मन तुम भर लो
जोड़-जोड़ के घर तुम भर लो
कमी हमेशा बनी रहेगी
भाग दौड़ ये लगी रहेगी । -१५

हर घर की है यही कहानी
खरीद-फरोख्त में गई जवानी
तन - मन इच्छा रही अधूरी
बीत गई बहुमूल्य जवानी ।” -१६

रचनाकार : गोपाल कृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक : २३-१०-२०२०

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