विजया दशमी के उपलक्ष पर लिखी रचना
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें
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मेरी चतुर्नवतिः काव्य रचना (My Ninety-fourth Poem)
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“विजया दशमी”
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“विजय मनाऊँ किसकी मैं
राम की या रावण की
गाथा किसकी गाऊँ मैं
राम की या रावण की
राम पिता की आज्ञा से
बिन महल चौदह वर्ष बिताये
रावण ने बहुत तपस्या से
जाने कितने स्वर्ण महल बनाये
रावण एक तपस्वी त्यागी
शिव के प्रति जिसकी अनुरागी
ऋषि पुलस्त्य पुत्र विश्रवा घर जन्मा
देवी सती श्राप से हुआ अभागी
त्याग तपस्या के बल पर
सारी धरती पर राज किया
अपने इष्ट से प्रेम लगाकर
दस मस्तक शिव को दान दिया
जिसके पास सम्पदा इतनी
सुना एक थी उसकी पत्नी
प्रेम दया करुणा से पूर्ण
वह भी शास्त्रों की थी ज्ञान ी
पत्नी एक मंदोदरी जिसकी
जो रावण के साथ रही
नित सत्य पथ पर चलने की
एक आस जगाए कुल में रही
त्याग भक्ति ज्ञान के बल पर
पाई ताकत सहर्ष अपार
सारा इतिहास गवाह इसी का
नहीं सुना किया हरण पर नार
फिर ऐसी क्या बात हुई
जो सूर्पनखा चित्रकूट को गई
अपनी काम लालसा हित
राम लखन पर मोहित हुई
तब चला समय का ऐसा खेल ा
रावण मति का नाश हुआ
बदला लेने को उत्तेजित होकर
स्त्री हरण का दुस्साहस हुआ
शायद एक यही पाप ऐसा था
जो प्रभू तुम्हारे द्वार पधाये
सारी राक्षस वंश जाति को
तुम श्रीराम हाथ मोक्ष दिलवाये
श्री राम प्रभु के दर्शन पाकर
प्रेम भाव तुम शीश नवाये
प्रभु चरणों की शरण जाकर
शौनकादि ऋषि श्राप से मुक्ति पाये
दुनिया ने केवल एक पक्ष देखा है
रावण को सदा गलत देखा है
रावण की ईश्वर भक्ति भूल कर
रावण का स्त्री हरण रूप देखा है
जिसका शिव जैसा स्वामी हो
वह राम विमुख कैसे हो सकता
प्रभु चित्त में ध्यान लगा हो
उनके बिन कैसे रह सकता
विजय मनाऊँ किसकी मैं
राम की या रावण की
गाथा किसकी गाऊँ मैं
राम की या रावण की” ।।
रचनाकार :- गोपाल कृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक :- ११ अक्टूबर २०१६