( पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या )
"गुरु की मृत्यु का समाचार सुन शिष्यों का मन व्याकुल था
जीवन का पथ जो सिखा गए, अंतिम दर्शन को मन आकुल था ।
लॉक डाउन में अनुमति लेकर, वृद्ध साधु गुरु के पास चले
सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान किये, चालक के संग दो शिष्य चले ।
गुरु की समाधि में पुष्प चढ़ाने भाव- विह्वल हो सफर शूरू किया
अश्रुपूर्ण नयनों को नमकर, मुंबई से सूरत को प्रस्थान किया ।
कुछ दूर पहुँच ही पाए थे कि गढ़चिचले गाँव ने साधू को घेर लिया
पुलिस वालों ने आगे बढ़कर, साधू को दुष्टों के हाथों सौंप दिया ।
माला-हारों के हकदारों पर, लातों-डंडो से भीषण प्रहार हुआ
जनता के रक्षक के समक्ष, यह अक्षम्य क्रूर कृत्य हुआ ।
हाथों को जोड़ें क्रंदन कर, साधु दया - याचना करते थे
पुलिस थाना में पहुँच हुये असहाय, स्वयं की रक्षा करते थे ।
जो करते समाज की पहरेदारी, लगता वह भी शामिल थे
रक्षक का भेष बना चौकी में बैठे कातिल थे ।
नर रूपी दानवों के मध्य हाथ जोड़कर साधु असहाय खड़े
हाय तनिक भी दया न आई जो साधू संतों पर टूट पड़े ।
दयावान वो संत हमारे, आशीषों से झोली भरते थे
राम कृष्ण शिवा की धरती पर, कायर युवा भीड़ के हाथों मरते थे ।
इतिहास के काले पन्नों में जगह पालघर दर्ज हुई
गाँव के क्रूर दानवों द्वारा, साधु की निर्मम हत्या हुई ।
ऋषियों की पुण्य धरा पर, साधू का अपमान सहन नहीं होगा
अब शांति नहीं सीधा रण होगा, यह साधारण नहीं भीषण होगा ॥"
- गोपाल कृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक - २०-०४-२०२०