मैं मजदूर हूँ
मजबूत हूँ
परिश्रम की साख पर
बैठा हुआ
देवदूत हूँ
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संघर्षों के बीच पैदा हुआ
संघर्ष में ही पला-बढ़ा
संघर्ष के अनुभवों से
मेरा कण कण गढ़ा
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हर रोज
मिलता हूँ प्रकृति से
संघर्ष करता हूँ
उसके हठीले स्वभाव से
और जीता हूँ
स्वच्छंदता की साँस से
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मैं थकावट को वरण कर
स्वेद की गंगा में
हिलोरे लेता हूँ
कभी तेज धूप को
चीरता हूँ
अपने वक्ष से
तो कभी खेलता हूँ
मखमली बौछार से
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देखता हूँ जब कभी
हथेली पर उगती ठिकारें
मोतियों सी चमकती हुई
महसूस होती
त्याग की वेदी पर
मेहनत का हार बनती........ क्रमशः
रचनाकार :- गोपालकृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक :- १ मई २०१६