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शांति प्रस्ताव

22 जुलाई 2016

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राम मंदिर तथा बाबरी मस्जिद
                     विवाद
सर्वप्रथम इस जमीन को लेकर हिन्दू मुस्लिम विवाद की शुरुआत 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल के दौरान तब हुई जब हिन्दू संप्रदाय के निर्मोही अखाड़े के संतो ने  ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थल पर मस्जिद-इ-जन्मस्थान खड़ी है वहां कभी एक हिन्दू मंदिर हुआ करता था पर बाबर के आदेश पर 1527 में मीर बाक़ी ने हिन्दू पुजारियों से इस जगह का छीनने के बाद यहां मस्जिद का  निर्माण करवाया। शाह जी ने इस विवाद को कुछ वर्षों के लिए टालना ही उचित समझा।
1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
भारत आजाद हुआ पर इस विवाद से उसका पीछा नहीं छुटा तब तक इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा।
1949 में मस्जिद में रात को गुपचुप तरीके से जब भगवान राम सीता की मूर्तियों को रखा गया तो तनाव बढ़ गया तनाव को बढ़ता देख प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को यह निर्देश दिया कि वो मूर्तियों को वहां से हटवांए और विवादित जगह पर ताला लगवा दें।
1984 में जब विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद के ताले को खुलवाने के लिए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किए तो 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का ताला खोल देने का आदेश दिया। और विश्व हिंदू परिषद को बाबरी ढांचे के पास विवादित जगह पर शिलान्यास की मंजूरी देकर इस विवाद को और हवा दे दी।
1989 में हिमाचल प्रदेश के पालनपुर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। इसे रामजन्म भूमि आंदोलन का नाम दिया गया।
1990 में यूपी के चुनाव से पहले वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक रथ पर सवार होकर सोमनाथ से अयोध्या तक की 10,000 किमी की यात्रा की शुरूआत की और हिन्दुओं को राम मंदिर बनवाने का आश्वासन दिया। 
इस राम जन्मभूमि आंदोलन ने बीजेपी को भी मजबूत बना दिया। 1991 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 221 सीटें मिलीं और कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने।
करीब साल भर बाद 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई जिसके चलते देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं। परिणामस्वरूप कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
 लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।
30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपी।
इस रिपोर्ट को तैयार करने मे लगभग 8 करोड़ रुपए खर्च हुए आयोग से जुड़े एक सीनियर वकील अनुपम गुप्ता के अनुसार 700 पन्नों के इस रिपोर्ट में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व भाजपा नेता कल्याण सिंह के नाम का उल्लेख 400 पन्नों में है, जबकि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की चर्चा 200 पन्नों पर की गई है। हालांकि अध्यक्ष से मतभेद के कारण अनुपम गुप्ता बाद में इस जांच से अलग हो गए।
               पैरोकार नही रहे
राम केवल दास , दिगंबर अखाड़ा के राम चंद्र परमहंस और अब हाशिम अंसारी साहब भी नही रहे।
हाशिम अंसारी साहब अयोध्या के विवादित बाबरी मस्जिद मामले में अदालत में मुसलमानों की तरफ से पैरोकार थे।
 94 साल के हाशिम अंसारी साहब  का बुधवार को निधन हो गया. अंसारी ने फैजाबाद में अपने घर में सुबह 5.30 बजे आखिरी सांसें लीं.
हाशिम अंसारी बीते 60 सालों से इस केस को लड़ रहे थे. उन्होंने 1949 में पहली बार इस मामले में मुकदमा दर्ज करवाया था. उस समय विवादित ढांचे के भीतर कथित रूप से मूर्तियां रखी गईं थीं.
राम चंद्र परमहंस और हाशिम साहब  अक्सर एक ही रिक्शे या कार में बैठकर मुक़दमे की पैरवी के लिए अदालत जाते थे और साथ ही चाय-नाश्ता करते थे।
6 दिसंबर, 1992 के हुए बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने जब हाशिम साहब का घर जला दिया तो अयोध्या के हिंदुओं ने हि उन्हें और उनके परिवार को बचाया था।
एक बड़े नेता ने जब अपने संदेशवाहक के माध्यम से हाशिम साहब दो करोड़ रुपए और पेट्रोल पम्प देने की पेशकश की तो हाशिम साहब ने न केवल इस ओफर को ठुकरा दिया बल्कि उस संदेशवाहक को भी दौड़ा दिया।
 हाशिम साहब ने बाबरी मस्जिद की पैरवी ज़रुर की लेकिन ता उमर इसका कोई राजनीति फ़ायदा नहीं उठाया।
                शांति प्रस्ताव
इस संसार में आज तक जितना लहू धर्म के नाम पर बहा है शायद ही उतना किसी और कारण से बहा होगा।
मुगल शासकों ने हिन्दू संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचाया मुसलमानों को यह बात अच्छी तरह पता हैं।
बाबर ने गलती की तो कानून तोड़ कर हिन्दूओ ने भी गलती की
इस मसले पर मुसलमान नहीं इस्लाम क्या कहता है।
इस विवाद का निपटारा अयोध्या वासियों को करना चाहिए नेताओं और बाहरी लोगों को नहीं क्योंकि आखिर उन्हें हि वहां रहना है।
राम मंदिर और मस्जिद दोनों ही वहाँ आसानी से बन सकते है।
अगर नहीं तो दोनों पक्षों को वहां से हटाकर वहां खुदा राम सरकारी अस्पताल बना देना चाहिए मानवता का कुछ तो भला होगा।
और दोनों पक्षों को अलग अलग जगह जमीन दे देनी चाहिए।
इस मसले का हल नेताओं के पास होता तो 1853 से अब तक हल हो जाना चाहिए था।
दोनो पक्ष अगर विवेक और ठंडे दिमाग से काम ले तो हि कोई रास्ता निकल सकता है
वरना पीढ़ी दर पीढ़ी यह जमीन लहू मांगती रहेगी।

कोर्ट यदि यह judgement देदे कि किसी भी विवादित जमीन जिसमें विवाद के कारण भारी जान माल के नुकसान होने की संभावना प्रबल हो वह जमीन सरकारी मानी जाएगी केवल सरकार ही उस पर किसी सरकारी इमारत का निर्माण करवा सकती है अन्य किसी पक्ष का उस पर कोई अधिकार नहीं होगा अन्य पक्षों को इसके एवज में अन्य जगह पर दूसरी जमीन दी जाएगी तो इस मुल्क के काफी विवाद सुलझ सकते हैं।
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