दौर चुनावी युद्धों का✒️जड़वत, सारे प्रश्न खड़े थेउत्तर भाँति-भाँति चिल्लाते,वहशीपन देखा अपनों काप्रत्युत्तर में शोर मचाते।सिर पर चढ़कर बोल रहा थावह दौर चुनावी युद्धों का,आखेटक बनकर घूम रहेजो प्रणतपाल थे, गिद्धों का।बड़े खिलाड़ी थे प्रत्याशीसबकी अपनी ही थाती थी,बातें दूजे की, एक पक्ष कोअंतर्मन तक दहलाती थ