हालातों से मजबूर अपनी हाय लिए बैठे हैं
अपनी ही लत से परेशान हम ग़लत बन बैठे है।।
पहली पहेली हल ना की फिर भी हाथ जोड़ खड़े हैं
माहिर हैं जो बयां करें दया वो बेवक्त करें हाथ खड़े है।।
हमीं से परेशान हैं हमें चाहने वाले
नफ़रत भी हमसें है और चाहते भी बहुत है।।
यादों का सिलसिला है लेकिन बातों की मनाही है
मेरे जेहन में अभी तक उनकी तस्वीर पुरानी है।।