नित नन्हे माटी के दीपक गढ़ते, नव अंकुरित भविष्य के रक्षक हैं । सपनों में इंद्रधनुषी रंग भरने वाले, अद्वितीय चित्रकार शिक्षक हैं। कृषक, शिष्यों के जीवन के कर्मठ, बंजर भूमि पर हरियाली लाते हैं। बोकर बीज व्यक्तित्व निर्माण के, समय के पन्नों पर इतिहास बनाते हैं। जनगणना और मतगणना करना अब रह गये शिक्षक के कर्तव्य। "लोलुप व्यापारी"का तमगा देते उंगली थामे दिखलाते जो गतंव्य शिक्षा अगर व्यवसाय बन रहा, गहराई में मथकर वजह तलाशिये। अव्यवस्थित प्रणाली के कीचड़ से, शिक्षक के आत्मसम्मान न बांचिये। जो करते है जीवन का अंधियारा दूर सम्मान में उनके ज़रा सर तो झुकाइये मुट्ठीभर कलुषित चरित्र के दंड स्वरूप समस्त समूह को कटघरे में न लाइये शिक्षक को अपशब्द कहने के पहले, अपनी आत्मा का भार अवश्य तोलिए। अपने शब्द भंडार का कीमती पिटारा, आत्मविश्लेषण के पश्चात खोलिए। माना वक़्त बदल गया और बदली सोच चाणक्य,द्रोण,संदीपन से गुरु नहीं मिलते पर सोचिये न एकलव्य,अर्जुन,चंद्रगुप्त, अब अरुणि जैसे पुष्प भी तो नहीं खिलते जीवन रथ के सारथी,पथ के मार्गदर्शक प्रस्तर अनगढ़,धीरज धर,गढ़ते मूर्ति रुप ऊर्जावान हैं सूर्य से,नभ सा हृदय विशाल इस जीवन के संग्राम में गुरु प्रभु समरुप -श्वेता सिन्हा