गर्व सृजन का पाया बीज प्रेम अंकुराया कर अस्तित्व अनुभूति सुरभित मन मुस्काया स्पंदन स्नेहिल प्यारा प्रथम स्पर्श तुम्हारा माँ हूँ मैं,बिटिया मेरी तूने यह बोध कराया रोम-रोम ममत्व कस्तूरी जीवन की मेरी तुम धुरी चिड़िया आँगन किलकी ऋतु मधुमास घर आया तुतलाती प्रश्नों की लड़ी मधु पराग फूलों की झड़ी "माँ" कहकर बिटिया मेरी माँ हूँ यह बोध कराया नन्हें पाँव की थाप से डोले रूनझुन भू की वीणा बोले थम समीर छवि देखे तेरी ठिठका इंद्रधनुष भरमाया जीवन पथ पर थामे हाथ भरती डग विश्वास के साथ शक्ति स्वरुपा कहकर बिटिया "माँ" का सम्मान बढ़ाया आशीष को मन्नत माने तू सानिध्य स्वर्ग सा जाने तू उज्जल,निर्मल शुभ्र लगूँ मुझे गंगा पावन बतलाया जगबंधन सृष्टि क्या जाने तू? आँचल भर दुनिया माने तू स्त्रीत्व पूर्ण तुझसे बिटिया माँ हूँ मैं, तूने ही बोध कराया --श्वेता सिन्हा