तुम खुश हो तो अच्छा है मुस्कानों का करके गर आखेट तुम खुश हो तो अच्छा है मरु हृदय में ढूँढता छाया तृण तरु झुलसा दृग भर आया सींच अश्रु से "स्व" के सूखे खेत तुम खुश हो तो अच्छा है कोरे कागद व्यथा पसीजी बाँच प्रीत झक चुनरी भींजी बींधें तीर-सी प्रखर शब्द की बेंत तुम खुश हो तो अच्छा है मन लगी मेंहदी गहरी रची उलझी पपनियों से वेदना बची उपहास चिकोटी दे मर्म संकेत तुम खुश हो तो अच्छा है मन मेरे यूँ विकल न हो लोलुप प्रीत के भ्रमर न हो प्रीत पात्र में देकर कुछ पल भेंट तुम खुश हो तो अच्छा है -श्वेता सिन्हा