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सिनेमा की सौंदर्य सुंदरी: मधुबाला

28 नवम्बर 2021

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मधुबाला


मधुबाला का नाम लेते ही एक खूबसूरत, मोहक, दिलकश और नूरानी चेहरा जेहन में उतर आता है। आज की युवा पीढ़ी के लिए यह नाम भले ही अजनबी हो मगर 50 के दशक मे श्वेत- श्याम वाली फिल्म नगरी की वह रंगीन नजारा हुआ करती थी। 

14 फरवरी 1933 में दिल्ली के ही एक पश्तून मुस्लिम परिवार में माता-पिता की पाँचवीं संतान के रूप में जन्मी मुमताज बेगम जहां देहलवी को "वीनस ऑफ द स्क्रीन"(सिनेमा की सौंदर्य देवी) की उपाधि मिली थी। बेबी मुमताज का बचपन बेहद मुफलिसी में बीता। वह ग्यारह भाई-बहने थीं। दिल्ली में कोई काम ना होने के कारण उनके पिता ने मुंबई का रुख किया ताकि कुछ काम करके बच्चों का पेट पाला जा सके। माया नगरी ने मुमताज को महज 6 वर्ष की आयु में ही अपनी आगोश में ले लिया। उनकी पहली फिल्म "बसंत"1942 में आई। फिल्म की नायिका देविका रानी उनके अभिनय से अत्यंत प्रभावित हुई और उनका नाम मुमताज से बदलकर मधुबाला रख दिया। इस तरह वह अपने बड़े से परिवार का अकेले भरण पोषण करने लगी। उनके पिता ने भी उन्हें फिल्म नगरी में स्थापित करने के लिए हर प्रकार के प्रशिक्षण दिए। शूटिंग, घुड़सवारी और ड्राइविंग वह बहुत ही कम उम्र में ही सीख गई थी। एक अभिनेत्री के रूप में "नीलकमल"(1947) उनकी पहली फिल्म थी।

 इस फिल्म में उनके नायक राज कपूर थे। इस फिल्म के बाद ही उन्हें सुंदरता की देवी का खिताब मिल गया। मगर उनकी दूसरी हिट फिल्म "महल"2 वर्ष बाद आई, जिसके गीत तथा अभिनय ने उन्हें पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं दिया। इसके बाद वह अशोक कुमार, देवानंद रहमान, दिलीप कुमार आदि कलाकारों के साथ फिल्म जगत पर छाई रहीं।

 उनके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियों का दबाव इतना ज्यादा था कि वह फिल्मों का चुनाव नहीं कर पाती थी। उनके पिता हीं उनके फिल्मों का चुनाव करते थे और शायद पैसे के लिए वह हर प्रकार की फिल्में साइन कर लेते थे। इसी गलत चुनाव के कारण 1950 से 1957 के बीच में उनकी कई फिल्में असफल रही। मगर यह असफलता ज्यादा दिन तक नहीं चली। उनकी अभिनय क्षमता एवं खूबसूरती ने दर्शकों को ज्यादा दिन तक मुंह नहीं मोड़ने दिया।

 फागुन, हावड़ा ब्रिज, काला पानी और चलती का नाम गाड़ी ने उन्हें फिर से शीर्ष पर बिठा दिया। "हावड़ा ब्रिज"की क्लब डांसर हो या "चलती का नाम गाड़ी"की चुलबुली लड़की... हर भूमिका में उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया और सिने प्रेमियों के दिलों पर छा गई।


 मधुबाला और दिलीप कुमार की जोड़ी --- 1944 में ज्वार भाटा के सेट पर वह दिलीप जी से मिली और उनके प्रति आकर्षित हुई। उस समय वह 18 वर्ष की थीं और दिलीप कुमार 29 वर्ष के। 1951 में "तराना"में भी उन दोनों ने साथ काम किया और उनका आकर्षण प्रेम में परिवर्तित हुआ। मगर मुग़ल-ए-आज़म के 9 वर्षों तक चलने वाली शूटिंग ने उन दोनों के प्रेम को गहराई दी। वे विवाह करना चाहते थे मगर मधुबाला के पिता को अभी अपनी बेटी के हाथों मे मेंहदी रचाने की कोई जल्दी नहीं थी। "नया दौर की शूटिंग के समय मधुबाला के पिता ने मधुबाला को मुंबई से बाहर जाकर काम करने से इंकार कर दिया ,जिससे बीआर चोपड़ा ने वैजयंती माला को बतौर नायिका ले लिया। इसीलिए मधुबाला के पिता ने बीआर चोपड़ा पर केस दायर कर दिया। इस केस के सुनवाई के दौरान दिलीप कुमार ने कलेजे पर पत्थर रखकर सच का साथ दिया और बी आर चोपड़ा की जीत हुई मगर उनका प्यार हार गया। और मधुबाला उनसे हमेशा के लिए अलग हो गई। फिल्मी हस्तियों की प्रेम कहानी मे यह सबसे दर्दनाक कहानी मानी जाती है। दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में भी अपने इस प्रेम का जिक्र किया है। 1956 में "ढाके की मलमल फिल्म की शूटिंग के दौरान उन्होंने मधुबाला से कहा कि काजी इंतजार कर रहे हैं, चलो मेरे घर... आज ही निकाह कर लेते हैं। लेकिन मधुबाला पर अपने पिता एवं भाई बहनों का बहुत ज्यादा दबाव था। वह कहते रहे कि आज अगर तुम नहीं चली तो मैं तुम्हारे पास लौट कर नहीं आऊंगा….. कभी नहीं आऊंगा। मगर मधुबाला ने आंसूओं से डूबे दिलीप कुमार का चेहरा पलट कर नहीं देखा और वह भी रोती हुई घर चली गई। और इस रिश्ते का दर्दनाक अंत हो गया।

 दिलीप कुमार से अलग होने के बाद ही तुरंत उन्होंने किशोर कुमार से शादी करने का फैसला कर लिया। दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया था। किशोर कुमार और उनकी पत्नी रोमा का भी तलाक उसी समय हुआ था। दोनों टूटते हुए दिलों ने एक दूसरे को मरहम लगाया और शादी का फैसला कर लिया। मगर अब तक सबको मालूम हो चुका था कि मधुबाला के ह्रदय में छेद है और जिस का ऑपरेशन करवाने व लंदन जा रहे हैं। उनके लौटने पर ही विवाह हो सकता था। मगर मधुबाला मृत्यु से पहले विवाह करना चाहती थीं ये बात किशोर कुमार को पता था। इसीलिए 1960 में उन्होने विवाह किया। परन्तु किशोर कुमार के माता-पिता ने कभी भी मधुबाला को स्वीकार नही किया। उनका विचार था कि मधुबाला ही उनके बेटे की पहली शादी टूटने की वज़ह थीं।


अनारकली को किया जीवंत------ मुगलेआजम फिल्म में उन्होंने शहजादे सलीम की प्रेमिका अनारकली की भूमिका को जीवंत कर दिया। यद्यपि 1960 में रिलीज़ हुई फ़िल्म उस समय बाक्स आफिस पर कोई चमत्कार ना कर सकी और उस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ फिल्म फेयर पुरस्कार भी मधुबाला को नहीं मिला। मगर आज भी यह माना जाता है कि वह फिल्म और मधुबाला का अभिनय फिल्म इतिहास में मील का पत्थर है। 2004 में इस श्वेत श्याम फिल्म को रंगीन किया गया, जिससे मधुबाला की खूबसूरती और भी निखर कर सामने आई। इस फ़िल्म मे सिर्फ़ उनका अभिनय ही नही बल्कि 'कला के प्रति समर्पण' भी देखने को मिलता है। इसमें 'अनारकली'की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनका लगातार गिरता हुआ स्वास्थ्य उन्हें अभिनय करने से रोक रहा था लेकिन वो नहींं रूकीं। उन्होने इस फ़िल्म को पूरा करने का दृढ निश्चय कर लिया था। फ़िल्म के निर्देशक के. आशिफ़ फ़िल्म मे वास्तविकता लाना चाहते थे। वे मधुबाला की बीमारी से भी अन्जान थे। उन्होने शूटिंग के लिये असली जंज़ीरों का प्रयोग किया। मधुबाला से स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भारी जंज़ीरो के साथ अभिनय किया। इन जंज़ीरों से उनके हाथ की त्वचा छिल गयी लेकिन फ़िर भी उन्होने अभिनय जारी रखा। मधुबाला को उस समय न केवल शारीरिक अपितु मानसिक कष्ट भी था। दिलीप कुमार से विवाह न हो पाने की वजह से वह अवसादग्रस्त थीं। इतना कष्ट होने के बाद भी इतना समर्पण बहुत ही कम कलाकारों मे देखने को मिलता है।


बेहद दर्दनाक रहा उनका अंतिम समय ----- कहा जाता है कि एक नजूमी ने बचपन में ही मधुबाला के बारे में कहा था कि वह अपने जीवन में बुलंदियों को छूएगी, मगर उसका जीवन अत्यंत दुखमयी होगा। और यह भविष्यवाणी सच भी हुई। जीवन के अंतिम 9 वर्ष मधुबाला ने बिस्तर पर ही बिताए और वह भी नितांत अकेले। महज 36 साल की उम्र, जीवन के आख़िरी नौ साल अपने घर में क़ैद हो कर रहने की मज़बूरी और केवल 66 फ़िल्में, लेकिन मधुबाला ने इन सबसे वो मुकाम हासिल कर लिया जो उन्हें हमेशा हमेशा के लिए उनको अमर कर गया।

    जब लंदन के डॉक्टरों ने जवाब देते हुए कहा कि वह सिर्फ एक या 2 वर्ष जीवित रहेंगी तब भारत वापस आने पर किशोर कुमार ने अपनी व्यस्तता के कारण मधुबाला को उनके पिता के पास रहने को छोड़ दिया और वह स्वयं महीने 2 महीने में कभी एक बार उससे मिलने आ जाया करते थे। जब मधुबाला को किशोर कुमार के साथ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तब किशोर कुमार के पास उनके लिए समय ही नहीं था।

ऐसे में दिल की बीमारी बढ़ती गई लेकिन मधुबाला के अंदर जीने की इच्छा काफ़ी भरी हुई थी, लिहाजा वो डॉक्टरों के हाथ खड़े करने के बाद नौ साल तक जीवित रहीं। लेकिन जीवन के आख़िरी नौ साल उन्होंने बेहद एकाकी में गुजारे। इस दौरान बेहद गिने चुने लोग ही उनका हाल चाल जानने के लिए उनके घर जाते रहे थे, इसमें दिलीप कुमार का परिवार भी शामिल था।

हालांकि मुगले आज़म के रिलीज़ होने के ठीक बाद मधुबाला गंभीर रूप से बीमार हो गईं, फिर भी अगले चार साल तक उनके काम वाली फिल्में रिलीज़ होती रहीं।

23 फरवरी 1969 को मात्र 36 वर्ष की कम आयु में उनका निधन हो गया।

भारतीय डाक सेवा ने 18 मार्च, 2008 को मधुबाला की याद में एक डाक टिकट जारी किया था,उनकी जिस ख़ूबसूरती का बॉलीवुड में कभी डंका बजता था, उस दुनिया ने उन्हें भुला दिया लेकिन वो भारतीय सिने प्रेमियों के दिलों पर राज कर रही हैं।

अभिनेता मनोज कुमार ने कहा था, "मधुबाला देश का चेहरा थीं. शताब्दी में कोई एक मधुबाला ही हो सकती हैं।जब भी उन्हें मैं देखता था तो मेरे दिल में ग़जल गूंजने लगती थी।

वाकई में मधुबाला कोई दूसरी नहीं हो सकती थीं, जिसकी तस्वीर देखने मात्र से दिलों में संवेदनाओं के तार झंकृत होने लगते हों। हमारे भी और आपके भी।"

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