"एक प्यार का नगमा है.. मौजों की रवानी है ,जिंदगी और कुछ भी नहीं…. तेरी मेरी कहानी है…"
" शोर" फिल्म का यह गाना आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि कल था। मगर हम मे से बहुत ही कम लोग यह जानते होंगे कि जिस नायिका पर यह गीत फिल्माया गया था, उसकी पूरी जिंदगी इसी गीत की तरह संघर्ष की कहानी बनी रही और अंततः वह चुपचाप इतिहास के पन्नों में दफन हो गई।
जी हां ! यह नायिका थी नंदा विनायक कर्नाटकी। आज फिल्म जगत जहां ग्लैमर का परिचायक है वही यह पहले बहुतों की सिर्फ जीविकोपार्जन का साधन हुआ करता था। 8 जनवरी 1943 में जन्मी नंदा कर्नाटककी एक ऐसी ही अभिनेत्री थी जिनके लिए फिल्मों में काम करना उनकी मजबूरी बन गई थी।
यूं तो उनके पिता मास्टर विनायक दामोदर कर्नाटकी मराठी फिल्मों के सफल अभिनेता एवं निर्देशक थे। सात भाई-बहनों में सबसे छोटी नंदा उनकी लाडली थी। परंतु 5 वर्ष की उम्र में ही नंदा के सिर से पिता का साया उठ गया और वह अचानक बड़ी हो गई। 5 वर्ष की उम्र में ही अपने पिता के निर्देशन में बनी फिल्म " मंदिर" में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट उन्होंने काम किया, मगर फिल्म पूरा होने से पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गई। इस फिल्म में उन्होंने एक लड़के का किरदार निभाया था। पिता के निधन के बाद घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि मजबूरी भी उन्होंने फिल्मों में काम करने का फैसला किया।
उस जमाने में अच्छे घरों की लड़कियां बतौर हीरोइन फिल्मों में काम नहीं करतीं थीं। मगर उन्होंने रेडियो एवं रंगमंच पर भी अभिनय किया। मंदिर फिल्म के बाद जग्गू ,अंगारे एवं जागृति में भी उन्हें इनके बाल अभिनय को सराहा गया। फिल्मों में काम करने के कारण यह स्कूली शिक्षा भी पूर्ण नहीं कर सकी। उन्होंने बहुत सारी फिल्मों में मुख्य नायिका की छोटी बहन का रोल निभाया है। उनके चेहरे की मासूमियत एवं सादगी इसका मुख्य कारण रहा। 10 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने एक मराठी फिल्म में लीड रोल भी किया जिसका नाम था "कुलदेवता"। दिनकर पाटील द्वारा निर्देशित इस फिल्म के लिए इन्हें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के द्वारा विशेष पुरस्कार भी मिला था।
नंदा के लिए अभिनय करना उनका रोजी-रोटी का साधन थी, इसीलिए वह अभिनय में जान डाल देती थी। उन्होंने अपने समय के सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया। देवानंद, शशि कपूर, मनोज कुमार, राजेश खन्ना, राज कपूर ,राजेंद्र कुमार …...मगर कभी भी किसी के भी साथ उनके अफेयर के चर्चे अखबारों एवं फिल्मी पत्रिकाओं की सुर्खियां नहीं बन सकी । वह परिवार को समर्पित अभिनेत्री थी । अपने भाई-बहनों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने विवाह करना भी जरूरी नहीं समझा।
1957 में उनकी फिल्म "भाभी" के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर नॉमिनेशन मिला। उसी वर्ष वी. शांताराम की फिल्म "तूफान और दिया" भी आई जिसमें उनके अभिनय को सराहा गया। 1959 में उन्होंने " छोटी बहन" फिल्म मे बलराज साहनी की अंधी बहन का रोल किया और इस फिल्म को दर्शकों ने सिर आंखों पर बिठाया। फिल्म का राखी गीत ---- "भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना
भैया मेरे छोटी बहन को ना भुलाना….." आज भी लोकप्रिय हैं। इस फिल्म की सफलता इस बात से जाहिर होती है कि कुछ लोगों ने तो नंदा जी को राखी भी भेजी थी। 1959 में ही राजेंद्र कुमार के साथ "धूल का फूल" फिल्म आई और यह भी सुपरहिट रही।
नंदा को सबसे बड़ी सफलता मिली शशि कपूर के साथ फिल्म "जब जब फूल खिले" से। यह फिल्म एक प्रेम कहानी थी जिसमे नायक के अमीर माता-पिता नहीं चाहते थे कि दो प्रेमियों का मिलन हो। इस फिल्म के गीत आज भी प्रेमियों की जुबान पर रहते हैं ------
"परदेसियों से ना अखियां मिलाना…. परदेसियों को है एक दिन जाना …."
इसी फिल्में में नंदा के ऊपर फिल्माया गया एक सोलो गीत……." ये समां समां है यह प्यार का किसी के इंतजार का….." भी बेहद लोकप्रिय हुआ था । इस फिल्म ने नंदा को रातों रात स्टार बना दिया। इसके बाद फिल्म गुमनाम हिट थ्रिलर फिल्म रही और उनकी भूमिका भी जबरदस्त थी।
कई हिट फिल्में देने के बाद उन्होंने अलग अभिनय के लिए फिल्म " इत्तेफाक" में निगेटिव किरदार निभाया लेकिन उनका यह अभिनय लोगों को पंसद नहीं आया। फिर फिल्म "नया नशा" में भी ड्रग एडिक्ट की भूमिका निभाई । लेकिन उनकी फिल्म फ्लॉप हो गई। इसके बाद तो उनकी समझ आ गया की ऐसे निगेटिव किरदार में वह अपनी पहचान खो सकती है। इसके बाद तो नंदा जी ने फिल्म असलियत, जुर्म और सजा जैसी ही फिल्में भी की। परंतु वह अपनी पुरानी पहचान ना बना सकी। उन्होंने मराठी के अतिरिक्त 8 गुजराती फिल्मों में भी काम किया है ।1983 में रिलीज "प्रेम रोग" उनकी अंतिम फिल्म थी। इसमें वह नायिका पद्ममिनी कोल्हापुरे की मां बनी थी।
नंदा की शुरुआती हिट फिल्में छोटी बहन, हम दोनों, तीन देवियां थीं। धूल का फूल, दुल्हन, भाभी, नया संसार, कानून, जब-जब फूल खिले, गुमनाम, शोर, परिणीता आदि उनकी यादगार फिल्में हैं।
नंदा की पर्सनल लाइफ के बारे में बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि वह डायरेक्टर मनमोहन देसाई से बहुत प्यार करती थीं। लेकिन उन्होंने इस बात का इजहार कभी मनमोहन देसाई से नहीं किया। इस बीच मनमोहन देसाई ने शादी कर ली। लेकिन कुछ सालों बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद 1992 में 53 साल की उम्र में नंदा ने मनमोहन देसाई से सगाई कर ली। लेकिन सगाई के दो साल बाद ही मनमोहन की छत से गिरकर मौत हो गई और नंदा आजीवन अविवाहित रहीं।
75 वर्ष की उम्र मे अभिनेत्री नंदा का मुंबई स्थित उनके घर पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
अपने बेजोड़ अभिनय, खूबसूरती ,सादगी एवं मासूमियत के लिए नंदा फिल्म जगत में सदैव पहचानी जाएंगी।
आरती प्रियदर्शिनी, गोरखपुर