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समय बड़ा बलवान ( लघुकथा )

8 मई 2022

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*समय बड़ा बलवान*  (लघु कथा )

 स्टील प्लान्ट के एक बड़े पद से रघु सेन को रिटायर हुए कुछ महीने ही हुए हैं । उन्होंने अपनी नौकरी बड़ी ही जिम्मेदारी से पूर्ण किया है । भ्रष्टाचार के दंश से वे बहुत दूर रहे । रिटायर होने के बाद उन्हें जो लाख भर  रुपिए मिले वही उनकी जीवन भर की कमाई थी। उनकी एम्प्लायर संस्था में पेन्शन का प्रावधान नहीं था । अत: प्राप्त पैसे में ही सारी ज़िन्दगी ठीक ठाक तरीके से गुज़ारनी थी । उन्हें उम्र भर कमाए गए पैसों का महत्व मालूम है । उन्होंने नेहरू नगर स्थित अपनी ज़मीन पर दो कमरों का छोटा सा मकान बना लिया और वहीं पति पत्नी और अपने एक 25 वर्षीय पुत्र के साथ शिफ़्ट हो गए। 

उनका बेटा प्रगति सेन सिरेमिक इंजिनयरिंग की पढाई करके जाब सर्च करने में लगा है।  प्रगति बहुत ही ताम झाम के साथ जीवन गुज़ारने में विश्वास रखता है। वह अपने पिता की सोच समझ कर खर्च करने की आदत से बहुत चिढता था । जल्द ही उसे टाइल्स , वाश बेशिन व वाशरुम फ़िटिंग्स बनाने वाले एक कारखाने में नौकरी मिल गई । जल्द ही उसकी शादी भी हो गई ।
जब हाथ में पैसा आने लगा तो उसका खर्च भी बढता गया । कुछ महीनों के अंदर ही उसने एक कार खरीद लिया । फिर  बैंक फ़ायनेन्स कराकर एक बना बनाया बड़ा सा मकान खरीद लिया ।और उस मकान में बहुत सारे बदलाव करवाने लगा । वह इन सारे खर्चों को बैंक से लोन लेकर पूरा करते रहा ।  मकान खरीदते समय उनके पिताजी रघु सेन ने बहुत समझाया कि बड़ा मकान क्यूं खरीद रहे हो । अगर ज़रुरी समझो तो हमारे घर में ही एक कमरा और बना लो । हमारे बाद तो यह मकान तुम्हारे ही काम आएगा । पर प्रगति ने जवाब में कहा कि आपका यह मकान बहुत ही छोटा है  । आपके मकान को देखने से ही लगता है कि इस मकान में रहने वाले लोग ज्यादा पैसे वाले नहीं हैं । मैं चाहता हुं कि मेरा मकान देखकर दूर से लोगों को लगे कि यहां कोई नगर सेठ रहता है । आप क्यूं इतनी फ़िक्र करते हैं? मेरी तन्ख्वाह इतनी है कि दो तीन साल में बैंक का सारा पैसा पट जाएगा । मुझे छोटे मकान में रहने से घुटन सी महसूस होती है साथ ही मुझे शर्मिन्दगी भी महसूस होती है । तब उसके पिता रघु सेन ने कहा बेटा हर इंसान की ज़िन्दगी में बहुत उतार चढाव आते हैं । कभी अच्छा वक़्त अपना हमसफ़र बनता है, तो कभी बुरा वक़्त भी अपना पंजा फैला देता है । अत: हमेशा अपनी आर्थिक योजना इस तरह बनानी चाहिए कि जब बुरा वक़्त घर में दस्तक दे तो हम उससे लड़ सकें । तुम भले इसे एक दकियानूसी या अप्रगतिशील सोच समझो पर इस तरीके में आर्थिक सुरक्षा की गारंटी पूरी रहती है । 
समय गुज़रता गया  प्रगति सेन नेहरु नगर स्थित अपने बड़े मकान में अपनी पत्नी के साथ रहने लगा । जबकि उसके माता  पिता उसके मकान से थोड़ी ही दूर अपने छोटे से मकान में रहते हैं । प्रगति सेन ने तनख्वाह के अलावा उपरी कमाई के कुछ रस्ते भी ढूंढ लिए । जिसके कारण उसके घर की तिजोरी पैसों से भरने लगी  । 
एक दिन उसे कंपनी के विजिनेन्स वालों ने किसी पार्टी से 20000 रुपिए की घूस लेते हुए धर दबोचा । उसके बाद उसकी नौकरी भी चली गई और उसे ज़ेल भी जाना पड़ा । साथ ही वह इंडस्ट्रियल बेल्ट में एक भ्रष्ट व्यक्ति के रुप में बदनाम हो गया । इसलिए नई नौकरी मिलने की संभावना पर भी पहरा लग गया । जब घर में पैसे आने में विराम लगा तो बैंक की ईएमआई पटना भी बंद हो गया । तब बैंक ने प्रगति सेन के माडगेज्ड मकान को कानूनी प्रक्रिया करके नीलाम करवा दिया । इस तरह अब प्रगति सेन आर्थिक समस्या से घिर गया । अब प्रगति सेन को अपने पिता के शरण में यानी रघु सेन के छोटे से मकान में शिफ़्ट होना पड़ा । साथ ही प्रगति अपनी इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाया । वह मानसिक असंतुलन का शिकार हो गया है। ऐसे में परिवार में बढे हुए खर्च से निपटने , उनके पिता रघु सेन जी , जिनकी उम्र पैसठ साल की हो चुकी है , एक स्टील फ़ेक्टरी में कार्य हेतु जाने की सोच रहे हैं ।  

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समय बड़ा बलवान
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रघु सेन रिटायर होने के बाद दो कमरों का छोटा मकाँ बना के रहने लगे। वहीं उसका बेटा प्रगति सेन बड़े ताम झाम का पुजारी था। जिसके कारण बाप और बेटा के बीच विवाद की स्थिति भी गाहे ब गाहे निर्मित होने लगी ।

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