shabd-logo

स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता

21 मई 2016

616 बार देखा गया 616
featured image

article-image

Þस्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता

उत्तराखंड में ही मिली थी गांधी को महात्मा की उपाधि

--- अविकल थपलियाल

मोहन दास कर्मचंद गांधी को महात्मा की उपाधि उत्तराखंड में ही मिली थी। खान अब्दुल गफ्फार खान को सरहदी गांधी के नाम से सबसे पहले एक उत्तराखंडी ने ही पुकारा था। यही नहीं भारत से गुपचुप निकलने के बाद अफगानिस्तान में आजाद हिन्दुस्तान की घोषणा करने वाला भी एक देहरादून निवासी ही था। प्रख्यात क्रांतिकारी रास बिहारी बोस वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने देहरादून से ही दिल्ली गये थे। इन पुरानी यादों को वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने अपनी नवीनतम् पुस्तक Þस्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता में ताजा किया है। इस पुस्तक में केवल उत्तराखंड की गौरवमय पत्रकारिता के अतीत की यादों को ताजा किया गया है बल्कि ऐसे ऐतिहासिक और प्रमाणिक तथ्य भी उजागर किये गये हैं जो कि आमो-खास की जानकारियों से दूर अभिलेखागारों की आल्मारियों में कैद हैं।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा हाल ही में लोकार्पित Þस्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता शीर्षक की पुस्तक में लेखक जयसिंह रावत ने लिखा है कि जब गांधी जी पहली बार दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे तो उन्होंने सबसे पहले जिन तीन भारतीयों से मिलने की योजना बनायी थी उनमें से बंगाल के रवीन्द्र नाथ टैगोर] दिल्ली के शिक्षाविद सुशील कुमार रुद्रा और हरिद्वार के मुंशीराम शामिल थे। बाद में मुंशी राम ने सन्यास ले लिया और वह श्रद्धानंद के नाम से विख्यात हो गये। मोहन दास कर्मचंद गांधी जब पहली बार हरिद्वार पहुंचे तो मुंशी राम ने गुरुकुल कांगड़ी पहुंचने पर उन्हेंमहात्मा के नाम से पुकारा और उसके बाद गांधी जी महात्मा ही कहलाने लगे। स्वामी श्रद्धानंद और गुरुकुल कांगड़ी का केवल स्वाधीनता आन्दोलन में बल्कि देश की पत्रकारिता के क्षेत्र में असाधारण योगदान रहा। इसी तरह खान अब्दुल गफ्फार खान को सरहदी गांधी की उपाधि देने वाला और कोई नहीं बल्कि देहरादून सेफ्रंटियर मेल अखबार निकालने वाले क्रांतिकारी पत्रकार अमीर चंद बम्बवाल ही थे। पुस्तक में लिखा गया है कि देहरादून से ही1914 में  प्रकाशित *निर्बल सेवक के संपादक राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने अफगानिस्तान पहुंच कर आजाद हिन्दुस्तान की घोषणा की थी और स्वयं को हिन्दुस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर विश्व नेताओं से भेंट की थी। जापान जा कर अखबार निकालने वाले महान क्रांतिकारी रास बिहारी बोस देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में हेड क्लर्क थे और वह वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने देहरादून से ही गये थे और बम कांड के बाद देहरादून ही लौटे थे। रावत ने अपनी पुस्तक में इस तरह के कई ऐतिहासिक तथ्य इस पुस्तक में उजागर कर रखे हैं।

लेखक ने पुस्तक में उत्तराखंड की पत्रकारिता के इतिहास को प्रमाणिक तथ्यों के आधार पर लिपिबद्ध करने के साथ ही स्वाधीनता आन्दोलन में इस क्षेत्र के समाचारपत्रों तथा पत्रकारों के असाधारण योगदान को उजागर कर नयी पीढ़ी के लिये एक मार्गदर्शी दस्तावेज के रूप में पेश किया है। इस पुस्तक में दुर्लभ पुराने अखबारों का संकलन और तत्कालीन पत्रकारों और साहित्यकारों द्वारा आजादी के आन्दोलन को भड़काने वाले उन साहित्यों को भी संकलित किया गया है जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रतिबंधित कर जब्त कर दिया गया था। यह प्रतिबंधित साहित्य राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली की आलमारियों में बंद है। विन्सर पब्लिशिंग कंपनी द्वारा पांच अध्यायों में प्रकाशित इस 312 पृष्ठ की पुस्तक का प्राक्कथन श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्व विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर यू-एस- रावत ने लिखा है।

पुस्तक के पहले अध्याय में कलकत्ता से प्रकाशित ऑगस्टर हिक्की के बंगाल गजट से लेकर उत्तराखंड में आजादी के बाद के अखबारों के उदय तक का प्रमाणिक विवरण दिया गया है। दूसरे अध्याय में उत्तराखंड के अखबारों के स्वाधीनता आन्दोलन में योगदान का उल्लेख किया गया है। इसी मुख्य अध्याय में उत्तराखंड में स्वाधीनता आन्दोलन और उसमें शामिल पत्रकारों का विवरण दिया गया है। इनमें से केवल परिपूर्णानंद पैन्यूली के सिवाय बाकी सभी पत्रकार दिवंगत हो चुके हैं। इसमें टिहरी रियासत और हरिद्वार की पत्रकारिता के योगदान का वर्णन अलग से करने के साथ ही उत्तराखंड की पत्रकारिता की जन्मभूमि मसूरी से निकलने वाले ऐतिहासिक अखबारों का अलग से विवरण दिया गया है। तीसरे अध्याय में सामाजिक चेतना में अखबारों की भूमिका और चौथे अध्याय में प्रेस से संबंधित कुछ कानूनों का उल्लेख किया गया है। पांचवां और अंतिम अध्याय एक तरह से उत्तराखंड की पत्रकारिता का अभिलेखागार जैसा ही है] जिसमें ऐतिहासिक अखबारों के आवरणों@मुखपृष्ठों के साथ ही आजादी के आन्दोलन में जनमत जगा कर आन्दोलन की ज्वाला भड़काने के लिये स्वाधीनता संग्रामी पत्रकारों द्वारा रचे गये उन गीतों का संग्रह है जिन्हें ब्रिटिश राज में प्रतिबंधित कर जब्त कर दिया गया था। ये समस्त दस्तावेज राष्ट्रीय एवं राज्य अभिलेखागारों के साथ ही दिल्ली स्थित नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय आदि श्रोतों से संकलित किये गये हैं। इससे पूर्व पत्रकार जयसिंह रावत की तीन अन्य पुस्तकें बाजार में चुकी हैं। इनमें सबसे पहली पुस्तक ग्रामीण पत्रकारिता पर तथा दूसरी पुस्तक उत्तराखंड की जनजातियों पर है। उनकी तीसरी पुस्तक हिमालयी राज्यों पर है।

 

लेखक-जयसिंह रावत

प्रकाशक- कीर्ति नवानी, विन्सर पब्लिसिंग कंपनी, 8, प्रथम तल, के.सी. सिटी सेंटर, डिस्पेंसरी रोड, देहरादून। मोबाइल: 9456372442 एवं 9412325979

आइएसबीएन- 978-81-86844-83-0

मूल्य-रु0 395-00

 

Jay Singh Rawat की अन्य किताबें

1

दलबदल कानून के औचित्य पर सवाल

21 मई 2016
0
1
0

दलबदल कानून के औचित्य पर सवाल-जयसिंह रावतउत्तराखंड की ताजा राजनीतिक उथल पुथल और अवसरवादिता की पराकाष्टा के बाद दल-बदल विरोधी कानून की उपयोगिता पर एक बार फिर सवाल खड़ा हो गया है। मौजूदा परिस्थितियों में इस कानून की भावना का सम्मान तो हो नहीं रहा, मगर राजनीति के खिलाड़ी अपनी-अपनी सुविधाओं के अनुसार उसका

2

दलबदल कानून के औचित्य पर सवाल

21 मई 2016
0
5
0

दलबदल कानून के औचित्य पर सवाल-जयसिंह रावतउत्तराखंड की ताजा राजनीतिक उथल पुथल और अवसरवादिता की पराकाष्टा के बाद दल-बदल विरोधी कानून की उपयोगिता पर एक बार फिर सवाल खड़ा हो गया है। मौजूदा परिस्थितियों में इस कानून की भावना का सम्मान तो हो नहीं रहा, मगर राजनीति के खिलाड़ी अपनी-अपनी सुविधाओं के अनुसार उसका

3

स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता

21 मई 2016
0
3
0

<!--[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x0000_t75" coordsize="21600,21600" o:spt="75" o:preferrelative="t" path="m@4@5l@4@11@9@11@9@5xe" filled="f" stroked="f"> <v:stroke joinstyle="miter"/> <v:formulas> <v:f eqn="if lineDrawn pixelLineWidth 0"/> <v:f eqn="sum @0 1 0"/> <v:f eqn="sum 0 0 @1"/> <v:f

4

गंगा के बारे में भ्रमित है भारत सरकार भी

23 मई 2016
0
1
0

भारत सरकार को गंगा की तलाश-जयसिंह रावतएक विदेशी पत्रिका मेंगंगा का वास्तविकउद्गम स्थल मानसरोवरहोने का दावाकिये जाने केबाद केन्द्रीय जलसंसाधन, नदी विकासऔर गंगा सफाईमंत्री उमा भारतीने राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान रुड़की कोगंगा का असलीउद्गम ढूंढ निकालनेकी जिम्मेदारी सौंपकर एक नयाविवाद खड़ा करदिया है। सुश्

5

गंगा के बारे में भ्रमित है भारत सरकार भी

24 मई 2016
0
2
0

भारत सरकार को गंगा की तलाश-जयसिंह रावतएक विदेशी पत्रिका मेंगंगा का वास्तविकउद्गम स्थल मानसरोवरहोने का दावाकिये जाने केबाद केन्द्रीय जलसंसाधन, नदी विकासऔर गंगा सफाईमंत्री उमा भारतीने राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान रुड़की कोगंगा का असलीउद्गम ढूंढ निकालनेकी जिम्मेदारी सौंपकर एक नयाविवाद खड़ा करदिया है। सुश्

6

दलबदल कानून के औचित्य पर सवाल -जयसिंह रावत उत्तराखंड की ताजा राजनीतिक उथल पुथल और अवसरवादिता की पराकाष्टा के बाद दल-बदल विरोधी कानून की उपयोगिता पर एक

24 मई 2016
0
1
0

<!--[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x0000_t75" coordsize="21600,21600" o:spt="75" o:preferrelative="t" path="m@4@5l@4@11@9@11@9@5xe" filled="f" stroked="f"> <v:stroke joinstyle="miter"></v:stroke> <v:formulas> <v:f eqn="if lineDrawn pixelLineWidth 0"></v:f> <v:f eqn="sum @0 1 0"></v:f> <v:f eqn=

7

“उत्तराखंड की जनजातियों का इतिहास”

24 मई 2016
1
6
0

  जनजातीय संस्कृति पर धर्मांतरणका साया-जयसिंह रावत-आदिवासियों के धर्मांतरणके लिये देशभर में इसाई मिशनरियां ही ज्यादा बदनाम रही हैं, मगर उत्तराखंड में शायदही कोई ऐसा धर्म हो जो कि आदिवासियों या जनजातियों को उनकी धार्मिक आस्थाओं से विचलितन कर रहा हो। उत्तराखंड के बौद्ध धर्म के अनुयायी जाड भोटिया जहां

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए