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तय हैं 2019 में भाजपा की हार ?

31 दिसम्बर 2018

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महज कुछ ही घंटे बचे हैं नए साल के आगमन मैं और साल शुरू होने से पहले ही हर एक भारतीय के मन से सबसे बड़ा और पहला प्रश्न यही हैं की ,क्या 2019 में मौजूदा प्रधानमंत्री के निर्देशन वाली भाजपा सरकार दोबारा से सत्ता पर काबिज हो पाएगी या नही ।


मौजूदा हालात पर गौर करे तो , जिस प्रकार पिछले कुछ महीनों में भाजपा का राज्य सभा चुनावों में प्रदर्शन रहा हैं तो हार निश्चित लगती हैं ,लेकिन क्या सिर्फ राज्य सभा के चुनावों के नतीजों को देखकर यह कहा जा रहा हैं।


हमने इसपर काफी गहन अध्यन किया और जो नतीजे निकले वो भाजपा के लिए काफी चिंताजनक हैं। आइए विस्तार में आपको बताते हैं कि क्यों 2019 में भाजपा के हारने के कयास लगाये जा रहे हैं, व इन कयासों में कितनी सच्चाई हैं। हमने जमीनी स्तर पर इसकी समीक्षा की तो हमे ये 5 प्रमुख कारण मिले जिससे जनता में भाजपा के खिलाफ असंतोष व आक्रोश हैं।


1. राम मंदिर


जब भी कोई चुनाव समीप आता हैं तो भाजपा का सबसे पहला व प्रमुख मुद्दा रहता हैं राम मंदिर , इसी मुद्दे को लेकर भाजपा 2014 लोकसभा चुनाव में उतरी थी और रिकार्ड जीत दर्ज किया था , परंतु चुनाव जीतने के लगभग 5 वर्षों बाद भी भाजपा अपने चुनावी मैनिफेस्टो के ब्रह्मास्त्र

"राम मंदिर" बनवाने का वादा पूरा नही कर पाई जिस कारण आम जनता , संघ और संत समाज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा हैं, और भाजपा को तख्तापलट की चेतावनी दे रहा हैं।



2. जी. एस. टी .


भारत मे कुल व्यापार आय का 40 प्रतिशत हिस्सा लघु उद्योग से निर्मित होता हैं। ऐसे में जुलाई 2017 में जी. एस. टी.

लागू होने से बड़े व्यापार के साथ-साथ छोटे व्यापार भी जी. एस. टी. के दायरे में आ गए , साल 2017 से पहले छोटे दुकानदार व लघु उद्योगी अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी प्रकार के

कर का भुगतान नही करते थे , किन्तु जी. एस. टी. लागू होने के बाद यह सभी जी. एस. टी. के दायरे में आ गए , परिणामस्वरूप लाखों लोगों को इसके कारण अपने उद्यम को बंद करना पड़ा , जिस कारण लाखों लोग बेरोजगार हो गए ।



3. डिजिटलिकरण


भारतवर्ष में लगभग 30% लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं , और भारत की आबादी का 70% जनमानुष गाँवों में रहता हैं। आंकड़ो का विश्लेषण करें तो शपष्ट हैं कि लगभग 40 करोड़ भारतीय आबादी गरीबी रेखा के नीचे हैं और तकरीबन 90 करोड़ आबादी गाँवों में रहती हैं। ऐसे देश मे माननीय प्रधानमंत्री का व्यवस्थाओं का डिजिटलिकरण करना लोगो को काफी कष्टदायक लगा। भारत की लगभग आधी आबादी इंटरनेट का ठीक तरह से इस्तेमाल करना नही जानती , ऐसे में सेवाओ का ऑनलाइन क्रय , विक्रय और भुगतान लोगों के लिए टेडी खीर साबित सुई।


4. कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी



मौजूदा हालात को देखते हुए रहीम जी का एक दोहा याद आता हैं ,

" बड़े बड़ाई न करे , बड़े न बोले बोल,

रहिमन हीरा कब कहे , लाख टका हैं मोल"


वर्ष 2014 चुनाव से पहले पेट्रोल , डीजल और रसोई गैस की कीमतों पर भाजपा के वरिष्ट नेता सहित श्रीमान नरेंद्र मोदी ने भी काफी हायतौबा मचाया था, लेकिन आज अंतराष्ट्रीय बाजार में लगातार कच्चे तेल की की कीमतों के घटने के बावजूद भी देश मे पेट्रोल , डीजल व रसोई गैस की कीमतें रोजाना बढ़ती ही चली जा रही हैं, यह तीनों चीज़े रोजमर्रा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु है, और अमीर हो या गरीब दोनो को इसकी मार झेलनी पड़ रही हैं।



5. बेरोजगारी



प्रमुख कारणों में "बेरोजगारी" बीते वर्षों में सबसे बड़ा मुद्दा रही हैं। और सरकार इस्से निपटने में असफल रही हैं। 2014 में भाजपा पर सबसे ज्यादा भरोसा युवाओं ने दिखाया था, लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद सबसे ज्यादा निराश देश का युवा ही हुआ। आज भारत मे हर दूसरा युवा समर्थ होने के बावजूद भी बेरोजगार हैं, और इसका कारण कही न कही केंद्र सरकार की ये नीतिया रही हैं, डिजिटलिकरण, नोटबन्दी और जी. एस. टी.। हालिया दौर में सरकार से सबसे ज्यादा नाखुश युवा हैं, और यकीनन इसका परिणाम भाजपा सरकार को आने वाले लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता हैं।



इन सभी तथ्यों से एक बात साफ स्पस्ट हैं ,जो कि एक उदहारण के तौर पर आपके सामने रखता हूं ।


" एक छोटा बच्चा जब रोता हैं तो आप उसे खिलौनों का मोह दिखाकर कुछ देर शांत अवश्य रख सकते हैं, किन्तु भूख लगने पर तो बच्चे को एक ही चीज शांत कर सकती हैं , और वो हैं खाना"।


आज प्रधानमंत्री मन की बात करके लोगो के "मन" तक बेसक क्यों न पहुच गए हो पर "जन" तक अभी भी नही पहुच पाए हैं। नव वर्ष में भाजपा सरकार क्या जन गण तक पहुच पाएगी या नही ? इसी सवाल के साथ हम आपसे विदा लेते हैं।


!अंत मे नमस्कार , व नववर्ष की अनेकों सुभकामनाये!






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