ठहर जाओ! घड़ी भर
और तुमको देख लें आँखें,
अभी कुछ देर मेरे
कान में गूंजे तुम्हारा स्वर,
बहे प्रतिरोम में मेरे सरस उल्लास का निर्झर,
बुझे दिल का दिया शायद किरण- खिल उठे जलकर,
ठहर जाओ! घड़ी भर
और तुमको देख लें आँखेंll
तुम्हारे रूप का
सित आवरण कितना मुझे शीतल,
तुम्हारे कंठ की
मृदु बंसरी जलधार सी चंचल,
तुम्हारे चितवनों की छाँह मेरी कामना उज्ज्वल,
उलझती फडफडात प्राणपंछी की तरुण पाँख,
लुटाता,
फूल-सौरभ-सा तुम्हें मधुबात से आया,
गगन की दूधिया
गंगा लिये ज्यों शशि उत्तर आया,
बड़े मन के महल
में भर गयी किस स्वप्न की माया,
ठहर जाओ! घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें।
मुझे लगता तुम्हारे सामने मैं सत्य बन जाता,
न मेरी पूर्णता को देवता कोई पहुंच पाता,
मुझे चिर प्यास वह अमरत्व जिससे जगमगा जाता,
ठहर जाओ! घड़ी भर और तुमको देख लें आँखें।