( तीन टांगों का घोड़ा ) लघु कथा
पिछले तीन दिनों से मेरी बेटी जिद कर रही थी कि मुझे भी घोड़ा वाला खिलौना चाहिए जैसे की पड़ोसी गुप्ता जी की बेटी रितु के पास है । पड़ोसी राजू गुप्ता जी बैंक अधिकारी थे और उनके घर में सब प्रकार की सुविधाएं नज़र आती थीं । रितु और मेरी बेटी हम उम्र हैं और सहेली भी । बेटी की ज़िद को देखते हुए आज मैं बाज़ार निकला था पचास रुपिये रखकर खिलौना खरीदने अगर वह पचास रुपिए के अंदर आ जाये तो । इससे ज्यादा पैसा मेरे पास था ही नहीं कि खिलौने के लिए ख़र्च कर दूं । खिलौने वाले ने मुझे झिड़क दिया कि इतने पैसों में तुम्हें किसी कबाड़ी के पास ही ऐसा कोई खिलौना मिल सकता है अगर तुम्हारी क़िस्मत होगी तो। मैं उदासी के आलम में वापस घर जा रहाथा कि बाजार के बाहर एक घूरे के ढेर पर मुझे मनमाफ़िक चीज़ दिखाई दी । एक गुलाबी रंग का चमक दार घोड़े का खिलौना ही था । पर गौर से देखने से पता चला कि उस घोड़े की एक टांग टूटी हुई थी और घुटने के नीचे लटकी हुई थी । घर आकर मैं अपने कमरे में जाकर उस घोड़े में चाबी भरकर उसे चलाया तो दिखा वह घोड़ा चल तो रहा था पर लंगड़ा लंगड़ा कर चल रहा था । मुझे विश्वास था कि मेरी बेटी उस खिलौने को देखकर ख़ुश होगी । मेरी उम्मीद के अनुरुप मेरी बेटी उस घोड़े को देखकर बहुत ख़ुश हुई और उसे चाबी से चला कर भी देखने लगी । फिर बेटी ने बोला कि पापा खिलौना तो बहुत ही अच्छा है पर यह घोड़ा भी आपकी साइकिल की तरह लहरा लहरा कर क्यूं चलता है ? क्या इस तरह लहरा लहरा कर चलना ही हमारी पहचान है ? बेटी की बातें सुनकर मैं भी सोचने पर मजबूर हो गया कि हमने कोई पाप किया है कि जीवन भर हमें गरीबी का दंश झेलना पड़ेगा ।
इसके बाद बेटी ने जो कुछ कहा उससे मुझे बड़ा सुकून मिला । बेटी ने कहा पापा यह घोड़ा मुझे बेहद पसंद है ।। इसकी लहरा लहरा कर चलना देख कर मुझे बहुत ही अच्छा लगता है । मुझे भरोसा है कि यह घोड़ा रितु को भी बेहद पसंद आयेगी । मैंने तब बेटी से कहा कि बेटी उपर वाले की तराजू सबके लिए बराबर होता है । सुख दुख का बंटवारा वह सबके लिए बराबर करता है । इसके बाद बेटी पड़ोसी के घर अपनी सहेली के साथ खेलने चली गई । आधा घंटे के बाद वह लौटी और कहने लगी कि पपा रितु को यह घोड़ा बेहद पसंद है । वह मुझको अपना नया सीधी चाल चलने वाला घोड़ा देना चाहती है और मेरा घोड़ वह लेना चाहती है । घोड़ों को आपस में वह बदलना चाहती है । जवाब में मैंने कहा कि बेटी ये तुम बच्चों के बीच की बात है । इसमें मैं क्या बोलूं ? अगले दिन शाम को मैं काम से वापस घर लौटा तो देखा कि मेरी बेटी के संग उसकी सहेली रितु बैठी है और वे घोड़े को दौड़ाने का खेल खेल रहीं थी । रितु का घोड़ा बहुत ही बुलंद तरीके से दौड़ता था । वहीं बेटी ने जब अपना घोड़ा दौराया तो वह लहरा लहरा कर दौड़ने लगा । उसे देखकर रितु बहुत ख़ुश हुई और उसे पकड़ने वह दौड़ी । उस समय उसकी दौड़ देखकर मुझे पता चला कि आखिर रितु को वह घोड़ा क्यूं पसंद है । वास्तव में रितु का एक पैर पोलियो से ग्रस्त था और वह भी लंगड़ा लंगड़ा कर चलती थी ।