कदम नाचते है।बचपन की बातें अक्सर दोहराई जाती हैं जो कभी भूलती नही वह दिमाग के किसी कोने में यादों की फटी चादर से झाँकती रहती हैं। जब भी मौका मिलता झिरी से दिखने वाले छेद से बाहर निकल कर नए नए किस्सो को पैर दे कर वापस कही गुम हो जाते है फिर कभी लौट कर आने के लिए। मौसम वही सुहाना जो मन को भाए दिमाग क