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तो'

14 जनवरी 2017

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कभी -कभी कितने ही खयाल मन में हलचल करने लगते हैं एक साथ ... सोचती हूँ.... इत्ता भी क्या भावनाअों का होना कि चैन से जी भी ना पाउँ। हर कदम, हर सांस ही भारी हो जाये... इतना भी क्युं जिम्मेदारी लेना या यूं कहें कि खुद को समझदारी का जीता जागता नमूना बना डाला मैने।ये लाइनें सिरफ मेरी नही है। ये लाइन उन सभी की हैं .. जो ज्यादा मेहसूसते हैं, जो अपने से ज्यादा अपनो को, परायों कों. . मिलने वाले हर मजलूमको मेहसूस लेते हैं। अौर तब फिर रातों की नींदे हराम कर लेना कोइ अाम बात सी लगती।


महसूस करना ...कितनी प्यारी नेमत है इश्वर की। लेकिन अगर ये नेमत हर किसी में बराबर बांट दी गयी होती तो....


कितने सारे तो''हैं ...मेरे पास, लोगों के पास।

पर जवाब नही है.. हमारे तो' का। हां .. अगर कुछ है ... तो वो है. ... मन को बेहलाना।

येही तो करतें हैं हम, अक्सर। जिन तो' के जवाब नही होते हमारे पास... उनसे बचने के लाखो बहाने होते हैं।

नही होता है. .. तो वो है. . एक असली जवाब. . एक हिम्मत,सच को स्वीकार कर पाने की।


अंशुल अर्चना सोनी

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