#पता_नहीं
अपनी दोस्त के साथ स्कूटी से जाते वक्त.. मेरी नज़र उसके हेंडल पर लटकी हुई सूखे गेंदें की माला पर गयी.. तो मैने बोला.. के होगयी थी पूजा,अब तो निकाल लो इसे.. फेंक देना,वरना फंसेगी। तब वह कहने लगी.. के अभी फेंक देतें हैं। निकाली माला.. और पुल आने पर स्कूटी रोक दी (नीचे डेम का साफ पानी बहता है जिसके)।। मैं उसकी मंशा समझ गयी.. तब मैने बोला के नहीं.. हम इसे डस्टबिन में फेंकेंगे। दोस्त कहने लगी के नहीं.. यह पूजा के फूल हैं इन्हे सिरफ विसर्जित किया जा सकता है। फिर मैने उसे बोला के यूँ तो जीवित हम और तुम, अपने शरीर का इतना ध्यान रखतें हैं.. और हमारे माता-पिता भी हमारे शरीर पर एक चोट लग जाने पर ज़मीन-आसमान एक कर देतें हैं। शरीर से बड़ा कोई धन नहीं.... लेकिन जब हमारी मृत्यु हो जाती हैं.. तब क्या किया जाता है इस शरीर का?? क्या तब हम मृत शरीर के प्रति इतना मोह रख पातें हैं..!!
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° मृत फूल-मालाएँ, पूजन सामग्री, पुराना प्रसाद... मूर्ति विसर्जन... आदि-आदि यह सब.. जीवित नदियों,तालाबों और समुद्र के लिये ज़हर का काम करतें हैं.. पता नहीं कब तक हम धर्म के नाम पर इनकों और भी ज़हरीला और प्रदूषित करतें रहेंगें।