आज से लगभग 200 साल पहले हमारे रतले खानदान में भैंसें की बलि दी जाती थी.. नवदुर्गा में!!
कुछ समय बाद भूरे कद्दू पर सिंदूर मलकर तलवार से काटा जानें लगा,भैंसें के प्रतीक के रूप में। और इस तरह हमारे परिवार में अंत हुआ पशुबलि की प्रथा का।
हिन्दू भी कुछ कम नहीं है, यह कहना होगा!!
आज भी कई हिन्दू जातियों में ऐंसी बलि प्रथा जारी है, क्यूँकि वे मोबाइल और लेपटॉप के साथ सुख सुविधा के नाम पर तो आधुनिक हो गयें हैं,लेकिन दिमाग़ अब भी आदिमानव वाला ही है।
जब मैं 9वी कक्षा में थी तब छुट्टियों में एक फैमिली ट्रिप के दौरान हम मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के गांव में स्थित चंडीदेवी मंदिर गये.. तब हमनें मंदिर में बलि का घिनौना रुप देखा था, के कैसे ज़िन्दा बकरों की गर्दन को घिस-घिसकर काटा जाता है.. कैसे उस बकरे की आह निकलती है पैने औजार के पहले वार से और उसकी आंखों मे दर्द.. जब बार-बार घिसा जाता है उसकी गर्दन।😲😲
और फिर खून का फव्वारा...
फिर जब नज़र घुमायी तो देखा के चारो और पेड़ों पर बकरे टंगे हुए थे जिन पर से खाल को खींचा जा रहा था।
और मुर्गों का बिना सर का दौड़ता हुआ शरीर, चारो और रक्त ही रक्त!
वीभत्स नज़ारा...
जिसे देखकर मेरा बुरा हाल हो गया और बेहोश हो गयी यहां तक कि मेरे चाचाजी का Blood Pressure Low हो गया।
फिर हम सब वहाँ से भाग निकले। बकरीद पर बकरा काटना,कुर्बानी के नाम पर.. बेशक गलत है।
लेकिन ऐसा हिन्दू धर्म में भी है.. फरक सिरफ इतना है के इतने बडे़ पैमाने पर और खुलेआम नहीं होता,लेकिन होता ज़रूर है।
कम पैमाने पर हो या छिपकर हो लेकिन निर्दोष और असहाय जानवरों की बलि देना गलत है, तो है।
कहने का मतलब यह है कि #धर्म_के_नाम_पर_बलि(हिंसा ) #धर्म_नहीं #अपितु_विशुद्ध_हत्या_है!!
हम सिरफ अपने से कमज़ोर की बलि कर सकतें हैं!!
जानवर हमसे कमजोर हैं, और हमारे पास औज़ार है, उच्च स्तरीय दिमाग़ है, उसका दुरुपयोग हम बखूबी कर सकतें है। कर सकतें हैं'' इसीलिए कर रहें हैं!!
क्या हो अगर जानवरों के हाथों में वही औज़ार आजायें दिमाग़ आजायें और वे हम इंसानों की बलि देने पर आमादा हो जायें और हम एक पिंजरे मे क़ैद, दूसरे इंसानों को कटता मरता देखें!!!?
ज्यादा दूर ही क्यूँ जाना... पास की ही बात ले लेतें हैं... जब कोई आतंकवादी या नक्सली, बेकसूर लोगों की जान ले लेता है धर्म के नाम पर या किसी मिशन या so called न्याय के लिये, क्यूँकि उस वक्त वे अपने औज़ारों का और दिमाग़ का उपयोग-दुरुपयोग कर लेतें हैं।
तब हम सब कैसे तिलमिला जातें हैं!!
हिंसा जानवरों पे हो या इंसान पे, हिंसा करना अपराध है।
धर्म के नाम पर हिंसा और भी गलत है क्यूँकि धर्म खुद को साधना सिखाता है, सिखाता है नियंत्रण,प्रेम और शांति।
हिंसा किसी भी ईश्वर को खुश नहीं कर सकती।