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हिंसा

15 सितम्बर 2016

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आज से लगभग 200 साल पहले हमारे रतले खानदान में भैंसें की बलि दी जाती थी.. नवदुर्गा में!!

कुछ समय बाद भूरे कद्दू पर सिंदूर मलकर तलवार से काटा जानें लगा,भैंसें के प्रतीक के रूप में। और इस तरह हमारे परिवार में अंत हुआ पशुबलि की प्रथा का।

हिन्दू भी कुछ कम नहीं है, यह कहना होगा!!

आज भी कई हिन्दू जातियों में ऐंसी बलि प्रथा जारी है, क्यूँकि वे मोबाइल और लेपटॉप के साथ सुख सुविधा के नाम पर तो आधुनिक हो गयें हैं,लेकिन दिमाग़ अब भी आदिमानव वाला ही है।

जब मैं 9वी कक्षा में थी तब छुट्टियों में एक फैमिली ट्रिप के दौरान हम मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के गांव में स्थित चंडीदेवी मंदिर गये.. तब हमनें मंदिर में बलि का घिनौना रुप देखा था, के कैसे ज़िन्दा बकरों की गर्दन को घिस-घिसकर काटा जाता है.. कैसे उस बकरे की आह निकलती है पैने औजार के पहले वार से और उसकी आंखों मे दर्द.. जब बार-बार घिसा जाता है उसकी गर्दन।😲😲

और फिर खून का फव्वारा...

फिर जब नज़र घुमायी तो देखा के चारो और पेड़ों पर बकरे टंगे हुए थे जिन पर से खाल को खींचा जा रहा था।

और मुर्गों का बिना सर का दौड़ता हुआ शरीर, चारो और रक्त ही रक्त!

वीभत्स नज़ारा...

जिसे देखकर मेरा बुरा हाल हो गया और बेहोश हो गयी यहां तक कि मेरे चाचाजी का Blood Pressure Low हो गया।


फिर हम सब वहाँ से भाग निकले। बकरीद पर बकरा काटना,कुर्बानी के नाम पर.. बेशक गलत है।


लेकिन ऐसा हिन्दू धर्म में भी है.. फरक सिरफ इतना है के इतने बडे़ पैमाने पर और खुलेआम नहीं होता,लेकिन होता ज़रूर है।

कम पैमाने पर हो या छिपकर हो लेकिन निर्दोष और असहाय जानवरों की बलि देना गलत है, तो है।

कहने का मतलब यह है कि #धर्म_के_नाम_पर_बलि(हिंसा ) #धर्म_नहीं #अपितु_विशुद्ध_हत्या_है!!


हम सिरफ अपने से कमज़ोर की बलि कर सकतें हैं!!

जानवर हमसे कमजोर हैं, और हमारे पास औज़ार है, उच्च स्तरीय दिमाग़ है, उसका दुरुपयोग हम बखूबी कर सकतें है। कर सकतें हैं'' इसीलिए कर रहें हैं!!

क्या हो अगर जानवरों के हाथों में वही औज़ार आजायें दिमाग़ आजायें और वे हम इंसानों की बलि देने पर आमादा हो जायें और हम एक पिंजरे मे क़ैद, दूसरे इंसानों को कटता मरता देखें!!!?


ज्यादा दूर ही क्यूँ जाना... पास की ही बात ले लेतें हैं... जब कोई आतंकवादी या नक्सली, बेकसूर लोगों की जान ले लेता है धर्म के नाम पर या किसी मिशन या so called न्याय के लिये, क्यूँकि उस वक्त वे अपने औज़ारों का और दिमाग़ का उपयोग-दुरुपयोग कर लेतें हैं।

तब हम सब कैसे तिलमिला जातें हैं!!

हिंसा जानवरों पे हो या इंसान पे, हिंसा करना अपराध है।


धर्म के नाम पर हिंसा और भी गलत है क्यूँकि धर्म खुद को साधना सिखाता है, सिखाता है नियंत्रण,प्रेम और शांति।


हिंसा किसी भी ईश्वर को खुश नहीं कर सकती।

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विशाल कुमार

विशाल कुमार

बहुत सुन्दर

15 सितम्बर 2016

15 सितम्बर 2016

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वह ...

7 सितम्बर 2016
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वो आंखो के काले घेरों पे foundation मलकर, निकलती है। वो धो लेती है आंसू washroom में और निकलती है होठों पर मुस्कुराहट मलकर।फिर गले लगाती है कसकर और गर्माहट प्यार की बॉटतें हुए मिलती है।वो चहकती है चिरैया के ज

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हिंग्लिश या हिन्दी

15 सितम्बर 2016
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ज़माना हिंग्लिश का हो चला है,मै भी अछूती नहीं इसीलिए उसी रंग की हूँ.. 12हवी तक हिन्दी में पढाई की,लेकिन मेडिकल तो हिन्दी में नहीं होता न..! तो फिर शुरु किया हिन्दी में याद करना और इंग्लिश में लिखना। लेकिन बात जमी नहीं और अब हाल यह है कि

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हिंसा

15 सितम्बर 2016
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आज से लगभग 200 साल पहले हमारे रतले खानदान में भैंसें की बलि दी जाती थी.. नवदुर्गा में!!कुछ समय बाद भूरे कद्दू पर सिंदूर मलकर तलवार से काटा जानें लगा,भैंसें के प्रतीक के रूप में।और इस तरह हमारे परिवार में अंत हुआ पशुबलि की प्रथा का।हिन्दू भी कुछ कम नहीं है, यह कहना होगा!!आ

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तो'

14 जनवरी 2017
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कभी -कभी कितने ही खयाल मन में हलचल करने लगते हैं एक साथ ... सोचती हूँ.... इत्ता भी क्या भावनाअों का होना कि चैन से जी भी ना पाउँ। हर कदम, हर सांस ही भारी हो जाये... इतना भी क्युं जिम्मेदारी लेना या यूं कहें कि खुद को समझदारी का जीता जागता नमूना बना डाला मैने।ये लाइनें सिर

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कविता

20 जनवरी 2017
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लिखें प्रेम कविताएँ...लिखें देशप्रेम लिखें दया... लिखें वफा लिखें हरियाली... लिखें जीवन लिखें व्यंजन... लिखें रंग लिखें भाईचारा... लिखें सुकून लिखें अमन... लिखें बसंत लिखें औरत का मान... लिखें ख्वाब लेकिन बार्डर पे छलनी सीनों पे.. सड़क किनारे भिखमंगो पे अखबारों की मैली

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#डायरी 14-10-2016 ब्रैस्ट-कैंसर

20 जनवरी 2017
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#डायरी 14-10-2016 भारत-भवन में चल रहें नेशनल प्ले फेस्टिवल में मंचित होने वाले नाटक को देख पानी की उत्सुकता में 1- घंटे पहले ही पहुँच गये हम... आदतन।भारत-भवन कलाकार और कलाप्रेमियों के लिये जादुई दुनियाँ से कम न हैं। कलाकार जादू रचतें हैं और कलाप्रेमी उस जादू में होकर एक

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#पता_नहीं

20 जनवरी 2017
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#पता_नहीं अपनी दोस्त के साथ स्कूटी से जाते वक्त.. मेरी नज़र उसके हेंडल पर लटकी हुई सूखे गेंदें की माला पर गयी.. तो मैने बोला.. के होगयी थी पूजा,अब तो निकाल लो इसे.. फेंक देना,वरना फंसेगी।तब वह कहने लगी.. के अभी फेंक देतें हैं। निकाली माला..

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