आज की नारीअपनी सोच को विराम न दूँगी , पंखों को आराम न दूँगी । इनकी शक्ति तो उड़ान है ,बुलंदियों को पाना ही मेरी पहचान है । हर पल बाधाएँ ही तो मिली थीं ,कुछ अपनों ने दी , कुछ समाज ने पर क्या मेरे सपनों को विराम लगा सके ? मंजूर नहीं , हर बार अपने अस्तित्व को यूँ कसौटी पर कसना !कहा था, बहुत ऊँची उड़ान क
मैं चाहें जितना उडूं वो उतार ही देगा चलाके तीर मेरे दिल पे मार ही देगा मेरे नसीब में ताउम्र शोहरतें ही नहीं खुदा जो देगा बुलंदी उधार ही देगा मैं खुद भी जीतने के ख्वाब मार बैठा हूँ मैं जानता हूँ मुझे तू तो हार ही देगा मुझे खुद अपने ही चेहरे पे ऐतबार नहीं छुपाऊं लाख ग़मों को उभार ही देगा मैं रिस्क