आज की नारी
अपनी सोच को विराम न दूँगी ,
पंखों को आराम न दूँगी ।
इनकी शक्ति तो उड़ान है ,
बुलंदियों को पाना ही मेरी पहचान है ।
हर पल बाधाएँ ही तो मिली थीं ,
कुछ अपनों ने दी , कुछ समाज ने
पर क्या मेरे सपनों को विराम लगा सके ?
मंजूर नहीं , हर बार अपने अस्तित्व को यूँ कसौटी पर कसना !
कहा था, बहुत ऊँची उड़ान की मत सोच , हासिल नहीं होगा ,
पर, मैं न थकूँगी , प्रयास करती रहूँगी ।
अपनी सोच को विराम न दूँगी ,
पंखों को आराम न दूँगी ।
भ्रम है तुझे कि तुझसे मेरी पहचान है ,
मर्यादाओं के नाम पर इन बंदिशों में नहीं मेरा मान है ।
मैंने तो तुझे थामा था ,तेरे डगमगाने पर ,
फिर , कैसे बिखरने दूँगी ?
स्वयं को पा जाने पर!
मेरी ख़ामोशी मेरा गुरूर नहीं ,
ज़रूरत पड़ी तो स्वयं जल कर भी प्रकाश करूँगी।
अब अपने दम पर सही हालात करूँगी ।
नारी उपहास नहीं ...,
उसकी शक्ति की गूँज, अब सरेआम करूँगी ।
अपनी सोच को विराम न दूँगी ,
पंखों को आराम न दूँगी !
परमजीत कौर
08.03.2020