उदास हूँ क्यों---
ये सवाल ही गलत हैं, क्योंकि जो तुम हो वो तुम्हारी वजह से!
वेसे की उदास मन कों नींद नहीं आती हैं। इस संदर्भ में राजस्थानी मे एक दोहा हैं-
नींद न आवे तीन जणा, कह सखी ते क्या।
प्रीत बिछोया, बहु ऋणा, खटके बेर हिन्या।।
अर्थात- एक सखी दूसरी सखी से कहती हें की 3 जन (व्यक्तियों) को नींद नहीं आती,
प्रीत बिछोंया- प्रेम में, बहु ऋणा- कर्जा हो जाए तो और किसी का पुराना बेर चुकाना हो तो।
अगर तुम्हें लगता हें की किसी की चाहत हैं तो उस उदासी को छोड़ दो।
श्री कृष्ण, शिव, महात्मा बुद्ध, कर्ण, भीष्म, परसुराम, ओशो और भी हें
जिन्होंने अपनी इस उदासी की अवस्था का त्याग-शांति, मनोतप, आस्था से त्याग किया।
-जहाँ हम अपने आप को पते हैं वहाँ हम हैं ही नहीं,
और जो हम हें वो इस अशान्ति में भूल जाएंगे।
- नीलकंठ वर्मी-- '' जहा से तुम उठो वह ही आज हैं और जो नहीं हैं तुम्हारे पास तो क्यू उसकी चिंता।
अगर जो हें ही नहीं तो क्या हुआ, आज सर्वोतम हैं-जो तुम्हारे मन से अध्येय हैं।''
-ये मन शांत अवस्था में उदासी भर देता हें और इस मन में तुम उस प्रेम की कल्पना करते हों जो असल में तुम्हारे अंदर ही नहीं हैं।
प्रेम तो शांति, मनोदय, उल्लास भरा होता हैं तो तुम्हारे मन में प्रेम के होते हुए उदासी कैसे- उठो देखो, अंदर के द्वीप को जलाओ तुममें क्या असल उदासी हैं।
अगर हाँ, तो तुम्हारा मन प्रेम चाहता हैं, यानि तुममे प्रेम हैं ही नहीं।
और अगर तुम्हें उआदसी को दूर करना हैं तो तुम प्रेम का रास्ता अपना लो- किसी फूल से, किसी बिल्ली से, किसी जानवर से, जीव के प्रति
- प्रेम कही भी हो सकता हैं। ओशो कहते हें कि प्रेम तुम्हें किसी एक से नहीं हो सकता अगर तुम्हारे मन में प्रेम की ज्योति जग रही हैं तो तुम प्रकर्ति इस संसार रूपी ध्येय से पार हो सकते हो।
तुम्हारा मन उल्लासता से भर उठेगा। तुम झूमोगे-एकांत में, किसी दोस्त के साथ।
-ओशो कहते हें की ''मेरी दो ही शिक्षाये हैं- अपने भीतर ध्यान में उतरो और अपने बाहर प्रेम में उतरो।"
तुम्हें अपने अंदर पूर्ति का ध्येय होगा या होने का अग सास दिलाएगा।
तुम जब प्रेम में आओगे तो तुम परिपूर्ण हो जाओगे, हालांकि एकांत नष्ट होना सबसे खतरनाक अवस्था हैं परंतु तुम्हें इसे भूलना भी नहीं चाहिए, तुम्हें सभी से प्रेम अपने भीतरी अहसास से होगा, और बाहरी पाखंड छोड़ना पड़ेगा, एक मित्र के भांति ही प्रेम अपनाना होता हैं।
-तुम्हें पहला प्रसंग और अभी का प्रसंग विरोध भाव का लगेगा, यह अवसर व्यक्तिभाव व प्रेम चाहता हैं।
- पहले प्रसंग में नींद न आने का कारण उदासी नहीं था।