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वसीयत: एक जरूरी प्रलेख

24 नवम्बर 2021

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वसीयत: एक जरूरी प्रलेख
वसीयत एक महत्‍वूपर्ण प्रलेख है लेकिन अक्‍सर इसे बनाने में आलस व लापरवाही की जाती है ।  आज भी वसीयत बनाने वाले व्‍यक्तियों की संख्‍या नगण्‍य है ।  वर्तमान भौतिकवादी युग में जबकि पारिवारिक रिश्‍तों में आपसी  त्‍याग व सम्‍मान का भाव  तार-तार हो रहा है, वसीयत होने का महत्‍व और भी बढ़ जाता है ।  

वसीयत कैसे बनाये...ॽ 
वसीयत बनाना बहुत आसान है । वसीयत बनाने के लिए कोर्ट कचहरी जाने की जरूरत नहीं । एक सामान्‍य विवेकशील व्‍यक्ति आसानी से घर बैठे ही वसीयत का निर्माण कर सकता है।

वसीयत के बारे में मुख्‍य बाते इस प्रकार है-
प्रत्‍येक स्‍वस्‍थ चित्‍त वयस्‍क व्‍यक्ति अपनी वसीयत बना सकता है । 
वसीयत के लिए स्‍टाम्‍प पेपर की आवश्‍यकता नहीं होती । एक सामान्‍य सादे कागज पर वसीयत बनायी जा सकती है ।
वसीयत को हाथ से, टाइप मशीन से या कम्‍प्‍यूटर से भी बनाया जा सकता है । प्राथमिकता हस्‍तलिपि की होनी चाहिए क्‍योंकि प्रत्‍येक व्‍यक्ति की हस्‍तलिपि अदि्वतीय होती है इस कारण हस्‍तलिखित वसीयत में, बाद में हेरफेर कर पाना मुश्किल होता है । 
वसीयत का पंजीकरण करवाना स्‍वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं । 
विधिक रूप से वसीयत के लिए कोई प्रारूप तय नहीं है । तथापि पहला अनुच्‍छेद यह घोषणा होनी चाहिए कि मैं...(नाम, पिता का नाम, उम्र, पता व व्‍यवसाय)  आज दिनांक.... को पूर्ण होशोहवास में बिना किसी दबाब व स्‍वैच्‍छा से अपनी वसीयत का निर्माण कर रहा हूं। 
वसीयत के अन्‍त में दिनांक व स्‍थान के साथ वसीयतकर्ता के हस्‍ताक्षर होने चाहिए ।
वसीयत यदि एक से अधिक पृष्‍ठों में है तो प्रत्‍येक पृष्‍ठ पर पृष्‍ठ संख्‍या अंकित करनी चाहिए ताकि बाद में पूरे पृष्‍ठ की हेराफेरी  को रोका जा सके । यदि वसीयत चार पृष्‍ठ की है तो पृष्‍ठ संख्‍या इस प्रकार अंकित करनी चाहिए- 1/4, 2/4, 3/4 व 4/4
वसीयत की सबसे अनिवार्य विशेषता है इसका साक्ष्‍यांकित होना । वसीयत पर दो स्‍वतंत्र गवाहों के, पूर्ण व्‍यक्तिगत विवरण के साथ हस्‍ताक्षर होना आवश्‍यक है । गवाहों के हस्‍ताक्षर के ऊपर यह घोषण आवश्‍यक है कि श्री..(वसीयतकर्ता) ने अपने हस्‍ताक्षर मेरे सामने किये है ।  बगैर गवाही के वसीयत का कानूनी मूल्‍य शून्‍य होता है। 
प्रत्‍येक पृष्‍ठ पर वसीयतकर्ता व गवाहों के हस्‍ताक्षर होने से वसीयत की कानूनी स्‍वीकार्यता बढ़ जायेगी ।
वसीयत में किसी तरह की कांट-छांट व अधिलेखन (ओवरराइटिंग) नहीं होनी चाहिए । 
वसीयत जीवन में कभी भी बनायी जा सकती है । 
जीवन में चाहे जितनी बार  वसीयत बनायी जा सकती है । लेकिन अन्तिम वसीयत ही कानूनी रूप से वैध व स्‍वीकार्य होती है । अन्तिम वसीयत से पूर्व की सभी वसीयतें निष्‍प्रभावी हो जाती है ।
यदि पूर्व में वसीयत बना रखी है तो उसका उल्‍लेख आज बनायी जाने वाली वसीयत में अवश्‍य करें जिससे पूर्व की वसीयत/वसीयतें स्‍वत: निरस्‍त हो जाये है ।

य‍दि वसीयत पहली ही है तो यह उल्‍लेख अवश्‍य करें कि यह मेरी पहली  वसीयत है । 
यदि वसीयत का पंजीकरण करवाया जाता है और उसके पश्‍चात एक नयी वसीयत का निर्माण कर दिया जाता है तो भी पूर्व की वसीयत भले ही पंजीकृत हो, निष्‍प्रभावी हो जाती है ।
वसीयत में समस्‍त चल व अचल सम्‍पतियां शामिल की जानी चाहएि।
वसीयत बनाने से पहले वसीयत में शामिल की जाने वाली अपनी समस्‍त सम्‍पत्तियों की सूची बना लेनी चाहिए । जैसे मकान, दुकान, खेत, कारखाना, वाहन, बैंक खातें, गहनें, लाकर, शेयर, पेटिंग्‍स, हीरें जवाहरत  आदि । सूची बनाने से व्‍यवस्थित तरीके से वसीयत बनाना आसान हो जाता है । 
गहनों के बाबत भी पूर्ण विवरण दर्ज करने की कोशिश करे ताकि गहनों की पहचान आसानी से हो सके और विवाद की कोई गुंजाइश शेष न रहें । 
अचल सम्‍पतियों का पूर्ण विवरण दर्ज करें जैसा कि उनके पट्टे/हक विलेख व कागजात में विवरण दर्ज होता है ।
दुपहिया व चौपहिया वाहन के बाबत उनकी पंजीकरण संख्‍या अवश्‍य लिखी जानी ।
वसीयत केवल स्‍वयम के नाम से धारित सम्‍पत्ति की ही की जा सकती है । 
पुश्‍तैनी सम्‍पति जिसका बंटवारा होना शेष है, में, अपने हिस्‍से बाबत वसीयत की जा सकती है । 
ध्‍यान रहें कि भाषा व निर्देश स्‍पष्‍ट हो इसके अभाव में अदालत द्वारा वसीयत की वैधता पर प्रश्‍न उठाया जा सकता है ।
अवयस्‍क सदस्‍य को हिस्‍सा देते समय उसके संरक्षक का उल्‍लेख होना आवश्‍यक है । ताकि उसके वयस्‍क होने से पूर्व यदि वसीयतकर्ता का निधन हो जाये तो निपटान में कोई समस्‍या न आये ।  
अपने बच्‍चों में सम्‍पति का बंटवारा करते समय ध्‍यान रखे कि आपके जीवन साथी पति/पत्‍नी के हिस्‍से में इतना हिस्‍सा जरूर आये कि आपकी अनुपस्थिति में उनकों अपना जीवन निर्वाह करने में आर्थिक व सामाजिक मुसीबतों का सामना न करना पड़ा । ऐसे कई उदाहरण सामने आये कि भावकुता में अपने बच्‍चों के बीच ही अपनी समस्‍त सम्‍पति का बंटवार  कर दिया बाद में पत्‍नी को बच्‍चों के आगे दयनीय स्थित में रहना व हाथ पसारना पड़ा । 
आदर्श व व्‍यावहारिक स्थिति यह है कि जीवन साथी के जीवित रहते सम्‍पति व बैंक जमाओं पर अधिकार अपने जीवन साथी को ही दे । ऐसा होने से बुजुर्ग साथी को स्‍वाभिमान का जीवन जीने का अवसर उसके हाथ में रहेगा । 
वसीयत बनाते समय भावकुता से बचे । व्‍यावहारिक दृष्टिकोण रखते हुवे कोशिश करें कि आपके बाद आपका परिवार आपस में जुड़ा रहे, बिखरे नहीं । उनमें आपसी प्रेम प्‍यार बना रहे, वैमनस्‍य नहीं । 
वसीयत लिखने के बाद उस पर हस्‍ताक्षर की जल्‍दबाजी न करें । एक बार लिख कर दराज मे रख दे;  दो-तीन बाद, तसल्‍ली से वसीयत का पुन:अवलोकन करें । सम्‍पति के बंटवारे व वसीयत की भाषा-शब्‍दों की पुनर्विवेचना करें और संतुष्‍ट होने पर हस्‍ताक्षर कर, वसीयत को  पूर्णता प्रदान करें। 
किसी बड़ी सम्‍पत्ति को खरीदने-बेचने पर वसीयत को अद्यतन करें । कोडपत्र के माध्‍यम से ऐसा किया जा सकता है । यह मूल वसीयत का एक हिस्‍सा माना जाता है । 
यदि मूल वसीयत का पंजीकरण करवाया गया है तो कोडपत्र का भी पंजीकरण आवश्‍यक है । 
यदि किसी वारिस को उसके हक से वंचित किया जा रहा है तो वंचित किये जाने के कारण का उल्‍लेख करना व्‍यावहारिक दृष्टि से ठीक रहता हे ताकि वसीयत की वैधता को चुनौती दिये जाने पर वसीयत की वैधानिकता सुदृढ़ रहें।
यह आवश्‍यक नहीं कि वसीयत में किये गये बंटवारे के बाबत आप अपने वारिसों को अवगत करवाये ।
वसीयत को तैयार कर उसे अपने मुख्‍य प्रलेखों की फाइल में इस तरह  नत्‍थी करे कि वारिसो को आसानी से नजर आ जाये ।

वसीयत होने से, परिवार में सम्‍पत्ति के बंटवारे बाबत मुकदमेंबाजी  की नौबत नहीं आती । धन व समय का अपव्‍यय नहीं होता और परिजनों मे आपसी प्रेम व सौहार्द बना रहता है । अत: प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति को अपनी वसीयत अवश्‍य बनानी चाहिए ।
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माणक चन्‍द सुथार,  बीकानेर ।




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