ई-रुपी अर्थात डिजिटल वाउचर
वर्तमान युग डिजिटल युग है । डिजिटल तकनीक जीवन के हर रूप को परिवर्तित और संवृद्धित कर रही है । डिजिटल तकनीक ने बैंकिंग व वित्तिय क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन किये है । आज, लेनदेन के नित नये माध्यमों के रूप में डिजिटल तकनीक, वित्तीय लेनदेनों को सरल, शीघ्र व सुरक्षित कर रही है । ऐसा ही एक माध्यम है- ई-रुपी (इलेक्ट्रोनिक प्रीपेड सिस्टम)। आइये, इसके बारे में जानकारी प्राप्त करते है ।
परिचय: ई-रुपी, भुगतान का नकद रहित व सम्पर्क रहित डिजिटल माध्यम है । यह अपने पूर्ववर्ती डिजिटल भुगतान माध्यमों से इस कारण भिन्न है कि इसके द्वारा भुगतान प्राप्त करने के लिये, बैंक खाते का होना, स्मार्ट फोन, आनलाईन बैंकिंग, नामे व जमाकार्ड या ऐप आदि किसी प्रकार के इन्टरनेट साधनों की सुविधा का होना जरूरी नहीं; केवल सामान्य मोबाइल फोन का होना ही पर्याप्त है । ई-रुपी के तहत क्यूआर कोड या एसएमएस के माध्यम से लाभार्थी की पहचान को सुनिश्चित किया जाता है ।
ई-रुपी, पहले से तय व्यक्ति व तय उद्देश्य के तहत भुगतान किये जाने की व्यवस्था है, जिन्हें बाद में बदला नहीं जा सकता । जैसे निजी अस्पताल में कोविड टिकाकरण हेतु, रामलाल को सरकारी प्रोत्साहन राशि के रूप में जारी ई-रुपी वाउचर का इस्तेमाल रामलाल को कोविड टीकाकरण के लिये ही किया जा सकता है । ई-रुपी का प्रयोग केवल एक बार ही किया जा सकता है ।
प्रक्रिया: ई-रुपी सेवा प्रदान करने के लिए वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक व एचडीएफसी बैंक सहित आठ मुख्य बैंकों को, ई-रुपी जारी करने के लिये अधिकृत किया गया है ।
सर्वप्रथम राशि अन्तरणकर्ता, वर्तमान में केवल सरकारी कार्यालय; लाभार्थियों के नाम की सूची उनके मोबाइल संख्या के साथ,
बैंक को प्रस्तुत करते है और साथ ही अन्तरित की जाने वाली राशि बैंक में जमा कराते है । तत्पश्चात बैंक द्वारा मोबाइल संख्या के आधार पर लाभार्थियों की पहचान सुनिश्चित कर सम्बन्धित लाभार्थियों के मोबाइल पर क्यूआर कोड या एसएमएस भेजा जाता है ।
लाभार्थी द्वारा अपने मोबाइल में प्राप्त क्यूआर कोड या एसएमएस को सेवा प्रदाता को दिखाने पर, उसको स्केन किया जाता है । स्केन करने पर लाभार्थी के मोबाइल पर एक ओटीपी आता है जिसको सेवाप्रदाता के साथ साझा करने पर ई-रुपी की राशि सेवा प्रदाता के खाते में जमा हो जाती है और लाभार्थी को निर्धारित सेवा प्रदान कर दी जाती है ।
ई-रुपी की प्रक्रिया को इस तरह से समझते है- एक सरकारी कार्यालय द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए कोविड टीकाकरण की व्यवस्था एक निजी अस्पताल के साथ की गयी और यह तय हुआ कि सम्पूर्ण राशि का भुगतान सम्बन्धित सरकारी कार्यालय द्वारा किया जायेगा । ऐसे में सरकारी कार्यालय, अपने लाभार्थी कर्मचारियों के नाम मय मोबाइल संख्या के बैंक को प्रस्तुत करेगा साथ ही देय कुल राशि का भुगतान भी बैंक में जमा करायेगा । अब बैंक सम्बंधित कर्मचारियों के मोबइल पर क्यूआर कोड़ भेजेगा । सम्बंधित कर्मचारी अपने मोबाइल पर प्राप्त क्यूआर कोड को टीकाकरण करने वाले अस्पताल को दिखायेगा । अस्पताल का कर्मचारी उस क्यूआर कोड को स्केन करेगा । स्केन करने पर लाभार्थी के मोबाइल पर एक ओटीपी आयेगा । लाभार्थी, प्राप्त ओटीपी संख्या, अस्पताल को सूचित करेगा । ओटीपी प्रयुक्त करने पर ई-रुपी की राशि अस्पताल के खाते में जमा हो जायेगी ।
उपयोग- प्रथम चरण में ई-रुपी वाउचर का प्रयोग जननी व शिशु कल्याण योजनाओं, क्षय रोग निवारण कार्यक्रम, आयुष्मान योजना के तहत
दवाईयों के भुगतान बाबत किया जायेगा । पहला ई वाउचर निजी
अस्पताल में कोविड टीकाकरण हेतु जारी किया गया । अगले चरण में निजी क्षेत्र द्वारा भी अपने कर्मचारियों की कल्याणकारी व सामाजिक योजनाओं के भुगतान हेतु इसका प्रयोग किया जा सकेगा।
फायदे-
• ई-रुपी का भुगतान प्राप्त करने के लिए इन्टरनेट आधारित साधनों, यथा ऐप-इन्टरनेट बैंकिंग सुविधा आदि, की आवश्यकता नहीं होती इस कारण इसका उपयोग व्यापक रूप से कर पाना सम्भव होगा ।
• ऐसे व्यक्तियों तक त्वरित डिजिटल भुगतान व्यवस्था का लाभ पहुचाया जा सकेगा जो डिजिटल तकनीक से अनभिज्ञ है और प्रयोग कर पाने में अक्षम ।
• ई-रुपी के तहत चूंकि राशि बैंक को पूर्व में ही प्राप्त हो जाती है अत: यह विश्वसनीय है ।
• डिजिटल तकनीक पर आधारित, सम्पर्क रहित भुगतान व्यवस्था होने के कारण यह सुरक्षित भी है ।
• केवल वेरीफिकेशन कोड के आधार पर भुगतान अधिकृत जो जाने के कारण यह सरल भी है ।
• क्यूआर कोड या एसएमएस आधारित होने से यह सुनिश्चित है कि भुगातन सही व्यक्ति को ही प्राप्त होगा ।
• चूंकि यह उद्देश्यपरक होता है और इसके उपयोग हेतु इन्टरनेट सुविधा का होना आवश्यक नहीं इस कारण ई-रुपी, डीबीटी (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) हेतु अत्यंत लाभकारी व प्रभावी विकल्प है ।
ई-रुपी को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) द्वारा विकसित किया गया है । 02 अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री द्वारा इसकी शुरुवात की गयी ।
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माणक चन्द सुथार,
बीकानेर (राज)