शरद रितु भी देख इनको ठंड से है सिकुड़ जाती
है अडिग हिमखंड पर भी तानकर ये चौडी छाती
लाख कष्टों में भी देखो मुसकुराते मौन है
हम सभी पहचान ले ये वीर योद्धा कौन हैं
न कोई रथ ही मिले न ही कोई सारथी
फिर भी उतारे नित्य ये माँ भारती की आरती
है बिकट दुसाद्ध्य ये राष्ट्र की आराधना
चरणों में माँ के शीश रख ये कर रहे हैं साधना
इन्हीं की साधना से चमन में फूल खिलते हैं
बड़ी तकदीर वालों को कफ़न रंगीन मिलते हैं
सागर से अंबर तक पवन परवाज करते हैं
दुश्मन पर झपटते यूँ के जैसे शिकार बाज करते हैं
कटाकर शीश भी अपना वतन की शान हैं रखते
हमेशा ही हंथेली पर ये अपनी जान रखते हैं
अग्नि में तप ढल रहे हैं कर्म पथ पर चल रहे हैं
आँधियो के संग देखो ये क्षितिज तक चल रहे हैं
मरूस्थल में भी मतवाले ये हमको शेर मिलते हैं
बड़ी तकदीर वालों को कफ़न रंगीन मिलते हैं
उदयबीर सिंह गौर
खमहौरा बांदा
उत्तर प्रदेश