shabd-logo

बूढ़ी गली

3 अक्टूबर 2021

27 बार देखा गया 27

मेरी सुध भी लेले मेरे प्यारे बेटे 

            तेरे बालपन की हूँ यादें समेटे 

तेरे संग संग दूर तक मैं चली 

               तेरे गांव की मैं बूढ़ी गली हूँ 

तू अपने घर से पकड़ मा उँगली 

          तू सबसे पहले मुझे पे चला था 

मेरे प्यारे बेटे तू बदला अभी है 

         तू कितना प्यारा पहले भला था 

तेरी याद में आज फिर मैं जली हूँ 

            भुलाता है क्यू मैं बूढ़ी गली हूँ 

पता है मुझे तू बहोत अब बड़ा 

          शहर में तेरा महल एक खड़ा है 

मगर याद कर पाठशाला पुरानी 

       वो कक्षा आज भी है जहाँ तू पढ़ा 

तेरी माँ की चरणों की रज हूँ समेटे 

            आ मुझसे लेले धरोहर ओ बेटे 

कल संग थी मैं मैं अब भी चली हूँ 

                 तेरे गांव की मैं बूढ़ी गली हूँ 

उदयबीर सिंह गौर 

खमहौरा बांदा उत्तर प्रदेश 

9793941034

उदयबीर सिंह गौर की अन्य किताबें

Pawan Pandit

Pawan Pandit

बहुत खूब

3 अक्टूबर 2021

Shivansh Shukla

Shivansh Shukla

शानदार रचना सर 👏👏👏👌👌🤟🤟🤟

3 अक्टूबर 2021

उदयबीर सिंह गौर

उदयबीर सिंह गौर

3 अक्टूबर 2021

हृदय की अनन्त गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद

किताब पढ़िए