मेरी सुध भी लेले मेरे प्यारे बेटे
तेरे बालपन की हूँ यादें समेटे
तेरे संग संग दूर तक मैं चली
तेरे गांव की मैं बूढ़ी गली हूँ
तू अपने घर से पकड़ मा उँगली
तू सबसे पहले मुझे पे चला था
मेरे प्यारे बेटे तू बदला अभी है
तू कितना प्यारा पहले भला था
तेरी याद में आज फिर मैं जली हूँ
भुलाता है क्यू मैं बूढ़ी गली हूँ
पता है मुझे तू बहोत अब बड़ा
शहर में तेरा महल एक खड़ा है
मगर याद कर पाठशाला पुरानी
वो कक्षा आज भी है जहाँ तू पढ़ा
तेरी माँ की चरणों की रज हूँ समेटे
आ मुझसे लेले धरोहर ओ बेटे
कल संग थी मैं मैं अब भी चली हूँ
तेरे गांव की मैं बूढ़ी गली हूँ
उदयबीर सिंह गौर
खमहौरा बांदा उत्तर प्रदेश
9793941034