हे प्रभु दीनबंधु दुख हरता
और कितने पापी तारोगे
घर घर उपज रहे दसकंधर
अब कितने रावण मारोगे
दिन प्रति दिन बढ़ रही यहाँ
पर सूर्पनखाओं की संख्या
गली गली अहिरावण फिरते
फलफूल रही फिर से लंका
कब तक वन वन भटकोगे
कितनी सहोगे और तपन
मिल माँगेंगे तुमसे वर सब
कितने और बचन हारोगे
घर घर उपज रहे दसकंधर
अब कितने रावण मारोगे
उदयबीर सिंह गौर खमहौरा बांदा उत्तर प्रदेश