इक बार एक आदमी जो आत्माओं या यूं कहो कि कल्पनाओ से बात करता रहता था, एक बार कब्रिस्तान के रास्ते जा रहा था जिस वजह इक औरत ( वैश्या ) का शव देख कर कुछ कल्पना रूपी बातें करता है जिसका जवाब वो कल्पना रूपी औरत ( वैश्या ) देती है
जो नीचे कविता के माध्यम से वर्णित है...
क्यों मौन है तुम्हारा मुख हे देवी
क्या पीड़ा है इस देह में
क्यों साधित हो मौन और
किन लोगों के नेह में
क्यों पड़ी हो बेसुध इस धरा पर
जिस पर तुम्हारा व्यापार हुआ
जिन लोगो ने कुचला तुमको, क्यों
उनसे तुम्हे प्यार हुआ
क्यों तुम्हारे सवालो से और तुम्हारे
इच्छाओं पर मौन ये समस्त संसार हुआ
जिस जीवन को दान किया तूने
क्यों उस जीवन पर प्रहार हुआ
ये सब सुन कर उस वैश्या ने अपने ऊपर घटित समस्त घटनाओ को बताना शुरू किया...।।।
हे भले मानव किस कारण तुम्हारे
अन्तर्मन में इन प्रश्नों का संचार हुआ
अब मैं पछताऊं, ऐसे ही पड़ी रहूँ,
क्योंकि अब मेरा देहावसान हुआ
जिन लोगो ने मुझको चाहा, उन्हीं
ने तिरस्कार किया
जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तब भूख ने गहरा प्रहार किया
थी मैं रोती, रही मैं चिल्लाती ना किसी ने
पुकार सुनी
भूख ने बच्ची को लेकर इक दिन बाज़ार गया
कुछ दानव ने रोटी देने के बदले
मुझ कन्या का व्यापार किया
थी शायद मैं नासमझ कि उनके स्नेह
को मैंने स्वीकार किया।
जब आया समझ में तब देह
हमारा उनका शिकार हुआ
जो थे हम उम्र के साथी,
वे कपड़ो से खिलवाड़ किये
खंजर रूपी नाखूनों से मुझ अबला
पर प्रहार किए
तात की उम्र के वे लोग देह के भूख से
विस्मृत सारा संसार/संस्कार किये
दो जून की रोटी के खातिर
उन सबको हमने नजरन्दाज किया
पर ना जाने किस मोह के कारण
उस दुष्ट ने हमारा व्यापार किया
भला हो उस सज्जन का, जिसने सुनकर चीख,
आगमन इस संसार किया
निकाला मुझे उन दरिंदो के चंगुल से
जख़्मी अपना देह रूपी संसार किया
उन हवल दारों से लड़कर अपने घर की
शोभा स्वीकार किया
अंत समय तक साथ देकर
उसने जन्म अपना साकार किया
थी मैं अकेली अब धरा
ना जन्म कोई संतान दिया
उन लोगो की नज़र से बचने को,
हमने ये देह त्यागना स्वीकार किया...।।