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'कविता' का जीवन..

30 नवम्बर 2019

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कवि, कभी नहीं चाहता कोई देखे,

उसकी कविता के प्रसव काल को,

प्रसव की इस अप्रतिम वेदना को

मैं स्वयं में संकुचित करना चाहता हूँ.।

घुटनों के माध्यम से उठती अपनी

तनया को आलिंगन कर,

भम्रण-गीतों के माध्यम से साहित्यगत

इहलोक में प्रख्यात कराना चाहता हूँ.।

नई परंपराओं का प्रक्षिशण कर,

वयःसंधि में ओजित लय देकर,

सभी काव्य-सर्जकों के नाद-द्वारों पर

तरुणी की संज्ञा दर्ज कराना चाहता हूँ.।

अपनी कन्या को मर्यादित कर,

परिधान का विशेष ध्यान कर,

वर रूपी पुस्तक के वरकों

के जरिये तुझे अहिवात बनाना चाहता हूँ.।

यौतुक में तुझे स्व नाम देकर

अनन्त तक अमर रहे इक

ऐसी कविता का कवि बनना चाहता हूँ.।

हाँ तेरे जरिये मैं सहित्यजीवी होना चाहता हूँ.।

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रचनाएँ
Bikhrepanne
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कुछ कविताएं लिखी थी, बिखरे पन्नों पर वक़्त की थपेड़ों से बिखर गए, पता नहीं किस दिशा गए उड़के उनके हाथ लगे तो लिखना सफल हो जाए..।।
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'कविता' का जीवन..

30 नवम्बर 2019
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कवि, कभी नहीं चाहता कोई देखे, उसकी कविता के प्रसव काल को, प्रसव की इस अप्रतिम वेदना को मैं स्वयं में संकुचित करना चाहता हूँ.। घुटनों के माध्यम से उठती अपनी तनया को आलिंगन कर, भम्रण-गीतों के माध्यम से साहित्यगत इहलोक में प्रख्यात कराना चाहता हूँ

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पहले वाली तुम..

28 दिसम्बर 2019
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मैं चाहता हूँ ; तुम पैरों में पायल की बजाय बैजंती की लड़ी पहनों, अधरों एवम मुख के बजाय अपने हृदय से बोलो, केशों को हाथों के बजाय वायु के झोंकों से सवारों, सड़कों, मॉलों और बिग बाज़ारों

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प्रेम समीकरण.

29 दिसम्बर 2019
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अत्यन्त सरल होता हैप्रेम का समीकरण,द्विघातीय व्यंजक की भांति।जिसमें केवल दो चर ही होते हैं।एक आश्रित चर,जो सदैव स्त्री होती है।एक स्वतंत्र चर,जो पुरुष होता है।समय परिवर्तन के साथदोनों चर स्वतंत्र हो सकते हैं। क्योकिं आश्रित होने पर समीकरण का हल नहीं निकलता, शिवम...

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वेश्या का जीवन

30 दिसम्बर 2019
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इक बार एक आदमी जो आत्माओं या यूं कहो कि कल्पनाओ से बात करता रहता था, एक बार कब्रिस्तान के रास्ते जा रहा था जिस वजह इक औरत ( वैश्या ) का शव देख कर कुछ कल्पना रूपी बातें करता है जिसका जवाब वो कल्पना रूपी औरत ( वैश्या ) देती है जो नीचे कविता के माध्यम से वर्णित है... क्यों मौन है तुम्हारा मुख हे देवी

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मैं और कविता

6 अगस्त 2021
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मैं और कविताशब्दों को तोड़ मोड़ कर बिखरा-कर उनको इतर बितरमैं गहन सोच में खो जाता हूँ।और इस तरह मैं आदमी सेकभी कुछ और बन जाता हूँ।बिखरें शब्दों को पुनः समेटकरसंयोग, वियोग का श्रृंगार करएक नए अर्थ को जन्म दे जाता हूँ।और इस तरह मैं मानव से एक कवि हो जाता हूँ।नए अर्थों को पुनः जोड़करएक नई कहानी, कविता

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