अत्यन्त सरल होता है
प्रेम का समीकरण,
द्विघातीय व्यंजक की भांति।
जिसमें केवल दो चर ही होते हैं।
एक आश्रित चर,
जो सदैव स्त्री होती है।
एक स्वतंत्र चर,
जो पुरुष होता है।
समय परिवर्तन के साथ
दोनों चर स्वतंत्र हो सकते हैं।
क्योकिं आश्रित होने पर समीकरण
का हल नहीं निकलता,
शिवम...