दवा लेने के बाद मिश्रा जी ने मुझे सांकेतिक भाषा में कहा कि वे बिस्तर पर बैठना चाहते हैं और इतने में उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे एक बच्चे की तरह बड़ी उम्मीद से देखा। वैसे तो मैं बहुत सख्त नर्स हूं लेकिन यहां मेरा दिल पसीज गया और मैने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा "ठीक है, लेकिन आप बस कुछ मिनट बैठ सकते हैं"। मैं मिश्रा जी को बैठाने की कोशिश कर रही थी । तभी सुमित और मालती भी मिश्रा जी को उठाने और बिठाने में मेरी मदद कर रहे थे। मिश्रा जी ने बैठने के बाद अपनी आँखों से हमें धन्यवाद दिया और मुझे एक अनमोल मुस्कान दी।
हाँ, मुझे पता है कि मेरी चाय ठंडी हो रही थी। इतने में मालती ने कहा कि मैम आप चाय पी लीजिए नहीं तो ठंडी हो जाएगी। मैंने कहा, "मैं नीता हूँ और आप मुझे मेरे नाम से बुला सकते हैं, मुझे कोई परेशानी नहीं होगी"। चाय खत्म होने के बाद सुमित ने कहा कि अब हमें घर जाना है क्योंकि हमारा बच्चा बहुत छोटा है। और कोई और साथ नहीं है, परन्तु हम शीघ्र ही आते हैं। यह कहकर वे बाहर जा रहे थे की मेरी नज़र मिश्रा जी पर पड़ी और मैं जानती थी कि वे नहीं चाहते कि सुमित जाए, लेकिन मैंने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की क्योंकि सभी जानते हैं कि सभी का अपना परिवार भी होता है।
अब घर में मैं और मिश्रा जी ही थे और समय लगभग 9.25 बजे का था। मिश्रा जी ने हाथ हिलाकर मुझे बुलाया और कुर्सी की ओर बैठने का इशारा किया। मैं भी उनसे बात करना चाहती थी इसलिए बिना कोई सवाल किए मैं बैठ गई। तभी मिश्रा जी ने कहा "मेरी डेयरी" यह पहला शब्द था जो मैंने उनके मुँह से सुना। मेरे लिए यह आश्चर्य की बात नहीं थी कि वे एक डायरी लिखते हैं आखिर वह एक लेखक हैं तो यह एक सामान्य बात है। मैंने कहा डेयरी कहाँ है? और उन्होंने अलमारी के दूसरे भाग की ओर इशारा किया। मैं कुर्सी से खड़ी हुई और फिर मैंने अलमारी खोली और वहां मुझे एक डेयरी मिली। मैंने सोचा ये वही डेयरी है तभी पीछे से आवाज आती है हां यही है। मैंने साफ देखा कि मिश्रा जी अपनी डायरी से कितने भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। मैं फिर से उसी कुर्सी पर बैठ गई और मैंने कहा कि अपनी डायरी लीजिए और अपनी यादों को फिर से जीने की कोशिश करो लेकिन उन्होंने कहा नहीं, मैं चाहता हूं कि आप मेरी जीवन यात्रा पढ़ें और मेरी यादों को ताजा करने में मदद करें। लेकिन मेरे लिए किसी की निजी डायरी पढ़ना बहुत कठिन था। मिश्रा जी ने कहा कि मैं तुम्हें पढ़ने की इजाजत देता हूं इसलिए पढ़ो लेकिन तुम्हें हर एक पन्ने पर तारीख बतानी होगी।
मैंने उनकी शर्त मान ली और मैंने एक डायरी का पहला पन्ना खोला। यहां आगे बढ़ने से पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि अब डायरी का हर पन्ना मिश्रा जी के नजरिए से उनकी कहानी कहेगा।
दिनांक 17/07/1979 दिन मंगलवार आज मेरे माता-पिता बहुत खुश हैं क्योंकि आज मैंने अपनी स्कूली शिक्षा अच्छे अंकों से पूरी की है। इसलिए मेरे माता-पिता मुझे इंजीनियरिंग करने के लिए कॉलेज भेजना चाहते हैं। लेकिन...मैं कैसे बता दूं कि मुझे इंजीनियरिंग करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें मुझ पर बहुत भरोसा है कि मैं उनके सपनों को पूरा करूंगा और मैं भी यही चाहता हूं। लेकिन वास्तव में एक लेखक के रूप में इंजीनियर के रूप में नहीं। मुझे आशा है कि वे मुझे समझेंगे ....
कागज एक रेगिस्तान के जैसा है जो रेत की तरह हल्का है लेकिन कागज पर लिखे शब्दों के वजन की तुलना रेत की गरमाहट से कि जा सकती है
दिनांक 12/02/1982 दिन शुक्रवार आज बरसों बाद मैं फिर से अपनी डायरी लिख रहा हूँ क्योंकि आज मेरी लिखी हुई पहली किताब प्रकाशित हुई और आज मेरी खुशियाँ सातवें आसमान पर हैं। आज मुझे अपने पिता की याद आ रही है क्योंकि वह मेरे विचार से बिल्कुल अलग थे। उन्होंने मेरे पेशे को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उन्होंने मेरे काम की तारीफ की। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे बहुत आधुनिक विचारक और सुलझे हुए व्यक्ति थे और आज मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं की वजह से हूं। अगर हमने किसी को एक बार खो दिया तो हम उसे दोबारा नहीं पा सकते।
"बहती लहरों को ना जाने किसने रोका था ये किस्मत का खेल या समय का धोखा था अब सोचते हैं हम कि रोक लेते हैं उस पल को अब किसको पता था कि वो ही एक आखिरी मौका था"|
शेष अगले भाग में........