shabd-logo

यात्रा मन की

28 जनवरी 2015

251 बार देखा गया 251
एक बया सा मन चाहता हे सृष्टि रच देना सूरज को दिखाकर दीया सितारों तक डग भर लेना लम्हे गुजरती देखतीं मेरी आंखें करना चाहती हैं वक्त का हिसाब और फिर समय के डार्क रूम में एक्सपोज कर देना सबकुछ पुरवाई की ओट में पीठ डाल पछुआ को मात देना और तान देना बरगद पर संभावनाओं का एक झूला मन की गठरी अनायास खोल शब्दों को अर्थवत्ता देना या फिर उसी मौन में डूब चुप रह जाना उम्र भर यह बया सा मन इन्हीं खयालों में ऊबता-डूबता है और रात गये नींद की पहुनाई तक ओढ़ लेता है शाश्वत खामोशी

घनश्याम श्रीवास्तव की अन्य किताबें

1

यात्रा मन की

28 जनवरी 2015
0
1
0

एक बया सा मन चाहता हे सृष्टि रच देना सूरज को दिखाकर दीया सितारों तक डग भर लेना लम्हे गुजरती देखतीं मेरी आंखें करना चाहती हैं वक्त का हिसाब और फिर समय के डार्क रूम में एक्सपोज कर देना सबकुछ पुरवाई की ओट में पीठ डाल पछुआ को मात देना और तान देना बरगद पर संभावनाओं का एक झूला मन की गठरी अनाय

2

एक जिंदगी, हजार फसाने

28 जनवरी 2015
0
0
0

पहाड़ों पर चमकती धूप फिसलती है, तो तराई का लिहाफ गर्म होता है। सुबह पेड़ों पर नामाकूल खगों को देखिए, तो कहां पता चलता है वे बीती रात कितनी, किससे दगाबाजी कर आये हैं। शाम को रात से कभी मिलना नहीं होता, तो वह गोधूलि की आड़ लेकर झट से गुम हो जाती है। गंवई मनई अपनी रौ में जीता है। बाजरे की रोटी खाकर मस्

3

कोरे मन का कैनवास

28 जनवरी 2015
0
0
0

कोरे मन का कैनवास खूंटी से उतारा, तो विचारों की रौशनाई उबलने लगी। इनसाइक्लोपीडिया की तरह शब्दों का संसार पसरा था, जिसे करीने से सजाकर टेक्स्ट की शक्ल देनी थी। इसी बीच छोटे-छोटे शब्द तंतु भी अपने बिल से बाहर निकल आये। अब प्रस्तावना लिखूं तो क्या। इसी दुनिया से विचारों की थाती लेकर कैनवास पर कहानी उके

4

सोमरी

28 जनवरी 2015
0
2
2

मेरे घर के पिछवाडे गर्मियों में गुलजार होता है सुर्ख पलाश साँझ के झूटपुते में अक्सर फूल चुनने आती है सोमरी उसके जूडे में पहले से ही होते हैं सफेद झकाझक जंगली फूल फूल उसे बहुत प्रिय हैं खुद भी वह फूलों जैसी ही है नाजुक, कोमल सोमरी इधर कई दिनों से आवाज नहीं आती उसके चांदी की पायल की मेरी खिड़की से होक

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए