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ढाई से ज्यादा दशक तक पूर्णकालिक पत्रकारिता(प्रभात खबर, हिंदुस्तान, अमर उजाला, पब्लिक एजेंडा) करने के बाद अब एक पब्लिशिंग हाउस में प्रबंध संपादक का दायित्व निभा रहा हूँ. जब तक अखबार में रहा, खूब लिखा, सब कुछ अपने मन की. एक कविता संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ के पास लंबित है. एक यात्रा वृत्तांत इस साल पूरा हो जाने की उम्मीद है. कहते है, पत्रकार को हमेशा क्रियाशील रहना चाहिए. इसलिए सतत लिखने की उत्कंठा बानी रहती है.

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श्वेत-श्याम सपनाें की अनकही यात्राएं

18 मई 2016
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भारत में हर माैसम अपनी रवानी में उतरता है अाैर कुछ उलाहने, कुछ प्रेम, कुछ पहेलियां बुझाते हुए निकल जाता है। इसीलिए हम भारतीय हर माैसम का बेइंतहा इंतजार करते हैं। गर्मियां भले ही ऊब-डूब करती सांसें अाैर पहलु बदलने का माैसम है, लेकिन अपनी रवायत अाैर रसीले अामाें की अामद की वजह से सभी काे इसका इंतजार र

सोमरी

28 जनवरी 2015
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मेरे घर के पिछवाडे गर्मियों में गुलजार होता है सुर्ख पलाश साँझ के झूटपुते में अक्सर फूल चुनने आती है सोमरी उसके जूडे में पहले से ही होते हैं सफेद झकाझक जंगली फूल फूल उसे बहुत प्रिय हैं खुद भी वह फूलों जैसी ही है नाजुक, कोमल सोमरी इधर कई दिनों से आवाज नहीं आती उसके चांदी की पायल की मेरी खिड़की से होक

कोरे मन का कैनवास

28 जनवरी 2015
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कोरे मन का कैनवास खूंटी से उतारा, तो विचारों की रौशनाई उबलने लगी। इनसाइक्लोपीडिया की तरह शब्दों का संसार पसरा था, जिसे करीने से सजाकर टेक्स्ट की शक्ल देनी थी। इसी बीच छोटे-छोटे शब्द तंतु भी अपने बिल से बाहर निकल आये। अब प्रस्तावना लिखूं तो क्या। इसी दुनिया से विचारों की थाती लेकर कैनवास पर कहानी उके

एक जिंदगी, हजार फसाने

28 जनवरी 2015
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पहाड़ों पर चमकती धूप फिसलती है, तो तराई का लिहाफ गर्म होता है। सुबह पेड़ों पर नामाकूल खगों को देखिए, तो कहां पता चलता है वे बीती रात कितनी, किससे दगाबाजी कर आये हैं। शाम को रात से कभी मिलना नहीं होता, तो वह गोधूलि की आड़ लेकर झट से गुम हो जाती है। गंवई मनई अपनी रौ में जीता है। बाजरे की रोटी खाकर मस्

यात्रा मन की

28 जनवरी 2015
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एक बया सा मन चाहता हे सृष्टि रच देना सूरज को दिखाकर दीया सितारों तक डग भर लेना लम्हे गुजरती देखतीं मेरी आंखें करना चाहती हैं वक्त का हिसाब और फिर समय के डार्क रूम में एक्सपोज कर देना सबकुछ पुरवाई की ओट में पीठ डाल पछुआ को मात देना और तान देना बरगद पर संभावनाओं का एक झूला मन की गठरी अनाय

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