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यूँ ही बिला वजह फितूर लिए फिरता है,हर शख्स हथेली पे जान लिए फिरता है,हर दरीचा खुलता है ग़ुरबत की ओर, गरीब ऊँची इमारतों के ख्वाब लिए फिरता है

25 अप्रैल 2015

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