mahesh
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मै एक इंसान हूँ और यही मेरी पहचान है.....
कब दरख्तो ने इज़ाज़त दी कब सांखे हमारी थी शज़र पे नशेमन बनाने की ख्वाइश हमारी थी
26 अप्रैल 2015
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यूँ ही बिला वजह फितूर लिए फिरता है,हर शख्स हथेली पे जान लिए फिरता है,हर दरीचा खुलता है ग़ुरबत की ओर, गरीब ऊँची इमारतों के ख्वाब लिए फिरता है
25 अप्रैल 2015
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तमाम सफ़र मुझे कोसता रहा वो जो हम सफ़र मेरे साथ चला था
25 अप्रैल 2015
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तमाम सफ़र यूँ ही कोसता रहा
25 अप्रैल 2015
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