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1- चींटी-नौका

7 अप्रैल 2023

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“अरे, नदी-किनारे तो बहुत लोग जमा हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे पूरा ओखापद ही यहाँ पहुँच गया है।" गति की ओर देखते हुए अथ ने कहा था और भोर के हलके उजाले में गुरुकुल जाने के लिए तेजी से नदी की ओर बढ़ रहा था। शायद उन्हें यह भी अहसास था कि वहाँ उन्हें गुरुकुल की खबर मिल सकती है। वैसे गुरुकुल जाने का भी यही रास्ता है। वे जब नदी के पास पहुँचे तो देखा कि ओखा के सारे लोग हाथ में मशाल या जलती लकड़ी उठाए नदी की ओर देख रहे हैं।

"यह क्या है?" नदी के किनारे पहुँचकर अथ और गति ने नदी में एक अद्भुत दृश्य देखा था। वे आगे बढ़ते हुए महा के पास पहुँचे थे और गति ने बड़ी हिम्मत कर महा के करीब खड़े होते हुए पूछ लिया था।

"चींटियों का पहाड़।" बिना उसकी ओर देखे महा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया था। सुबह का उजाला पसर चुका था और आकाश में सूर्य की लाली उसके उदय होने का संकेत दे रही थी। सामने नदी के बीच एक अद्भुत दृश्य

"यह चींटियों का पहाड़ नदी के पानी में तैर कैसे रहा है?" कुल के मुँह से आश्चर्य भरे शब्द निकले थे। "ये चीटियाँ समूह बनाकर नदी में तैर रही हैं। पानी और हवा के वेग को अपनी चौड़ाई और ऊँचाई से नियंत्रित करते हुए नदी पार कर रही

हैं। ये यहखोर चींटियाँ हैं।" उस अद्भुत दृश्य पर नजरें टिकाए उनकी गतिविधियों को ध्यान से देखते हुए महागुरु सुधि ने समझाया था। "मतलब?" महा ने महागुरु की ओर देखते हुए पूछा था।

"मतलब इस प्रकार नदी ही नहीं, सागर को भी पार किया जा सकता है। अब देखो, वे सागर की ओर ही जा रही हैं। ये इसी तरह तैरती हुई दूर निकल जाएँगी।" महागुरु ने आज फिर एक नई बात कह दी थी। ऐसा लगता, जैसे महागुरु के पास अनुभव के साथ ज्ञान का खजाना भी है, जो अकसर छलकता रहता है।

"अच्छा, धन्यवाद महागुरु! हम अवश्य इसका प्रयास करेंगे।" कुछ ही देर में चींटियों का पहाड़ नदी के बीच से गुजरते हुए सागर की उठती-गिरती लहरों पर तैरने लगा था और देखते-ही-देखते वह अंतरद्वीप की ओर मुड़ने लगा था।

"अरे, तुम तो आहत हो गति? तुम्हारे पैर, हाथ और मुँह से भी रक्त बह रहे हैं। तुम लोग... " गति पर नजर पड़ते ही महा ने आश्चर्य से पूछा था।

"हाँ, हम पर चींटियों ने हमला किया था। ठोकर खाकर दीये का तेल गिरने और उसकी वजह से पत्तों व सूखी घास में आग लगने के कारण हम स्वयं को बचा पाए। उसके कारण कुछ देर के लिए चीटियाँ हमसे दूर चली गई। हमें आग को आसपास फैलाने और उसे उठाने का मौका मिल गया, इसीलिए हम लोग किसी तरह बच पाए। वैसे तुम्हारे चेहरे से भी खून बह रहा है और तुम भी आहत दिख रही हो।" महा का जवाब देते हुए गति की नजर उसके चेहरे, हाथ और पाँव पर पड़ी थी। अनेक जगह से खून रीस रहा था।

"ओ, चलो, अच्छा है। तुम दोनों सुरक्षित हो। औषधालय जाकर अपना उपचार करा लो। यह भयंकर आक्रमण था। इस तरह का आक्रमण हमने पहली बार देखा-सुना है। चीटियाँ बड़ी शीघ्रता के साथ किसी आँधी की तरह आई थीं और जो भी जीवित मिला, उस पर वे आक्रमण करने लगीं। वे आक्रमण क्या कर रही थीं, यह समझो कि पल में जीवित लोगों को खा जा रही थीं। उन्होंने आक्रमण तो मुझ पर भी किया था, पर मेरी मशाल बिल्कुल मेरे करीब जल रही थी। जैसे ही वे मेरी देह पर चढ़ीं, पता नहीं क्यों मुझे किसी खतरे का अहसास हुआ और मैने तुरंत अपनी मशाल उठा ली। तब तक उन्होंने मुझे घायल कर दिया था। मशाल से उन्हें जलाते हुए मैं बाहर आई और दूसरों को भी शोर करते हुए जगाना शुरू किया, पर दामा..." कहते हुए भावुक हो गई थी महा। उसकी आँखें गीली हो गई थीं।

“क्या हुआ दामा को?" गति ने विचलित होते हुए पूछा था। तब तक महागुरु और अन्य लोग भी महा की ओर देखने लगे थे। "दामा नहीं रहीं। चींटियों ने..." कहते हुए महा ने अपने दोनों होंठों को एक-दूसरे पर चढ़ाकर रुदन को रोकने की कोशिश करने लगी थी। उसका चेहरा दुःख के भाव में जैसे थरथराने लगा था।

“आह!" महागुरु के मुँह से भी गहरी वेदना के शब्द निकल आए थे। वहाँ उपस्थित सभी लोग इस बात से बहुत दुःखी हुए थे।

“आह, कल ही तो मैंने दामा को खोया की मिठाई खिलाई थी। आज की रात बहुत भयावह थी। दुःख, भय और दर्द से भरी हुई पूनम की रात।" कहते हुए गति की आँखें भी छलछला आई थीं।

"अन्य सभी लोग सुरक्षित हैं न? कोई आहत तो नहीं हुआ? चलो, चलकर देखें! हमें हरेक घर को देखना होगा। साथ ही अन्य पशुओं को भी देखना होगा।” महा ने अपने दोहरे दर्द से उबरते हुए तेज स्वर में पूछा था।

“हाँ, गुरुकुल का क्या हाल है, महागुरु?" गति ने व्यग्र होते हुए पूछा था।

“गुरुकुल में तो सब ठीक है। बच्चों के साथ सभी गुरुजनों ने समय रहते जलती लकड़ियाँ और मशालें हाथ में उठा ली थीं। चीटियाँ आई अवश्य थीं, पर आग अलाव के कारण वे अधिक संख्या में अंदर नहीं घुसीं । हमें भी बड़ी शीघ्रता से उनके आक्रमण का भान हो गया था।" महागुरु ने गुरुकुल के बारे में बताया था।

“यह अच्छी सूचना है, पर शायद मृदु और उसके साथी ..." महागुरु के चुप होते ही यह कहते हुए अथ चुप हो गया था। वह इस बात से संतुष्ट भी हो गया था कि गुरुकुल में सब ठीक है।

"क्या हुआ मृदु और उसके साथी को उसका साथी, मतलब कौन थी उसके साथ? कहीं खर तो नहीं थी? कल वह आई थी मेरे पास कुछ नए बाण लेकर।" महा ने चौंकते हुए पूछा था। उसके चेहरे पर आचर्य तो था ही, एक अनजाना सा भय भी छिटक गया था। "उसके घर में उनके कंकाल शेष रह गए हैं।" कहते हुए काँप गया था अथ ।

"आह!" महा ने दुःखी मन से अपनी आँखें बंद कर ली थीं, मानो प्रार्थना के साथ व्यथित मन से उन्हें श्रद्धांजलि दे रही हो! भावुक होते हुए उसने असा के कंधे को पकड़ लिया था।

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हिमयुग में प्रेम
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"जिन्दा रहने के संघर्ष के साथ 32000 साल पहले मनुष्य के होंठों ने खाने और बोलने केअलावा होंठ-चुंबन किया। सहवास की अवधारणा के साथ संसार का पहला प्रेम और पहले परिवार की परिकल्पना भी शुरू हुई। संसार के पहले राज्य जंबू की स्थापना हुई और संसार को पहला सम्राटद्वय मिला। इसके राज गल्फ ऑफ खंभात (गुजरात) की गहराइयों में आज भी छुपे हुए हैं, जहाँ हिमयुग में नगर होने के संकेत मिले हैं। संसार में अब तक मिली नगरीय सभ्यताओं में यह सबसे पुराना नगर होने का अनुमान है। विज्ञानियों-पुराविदों के नवीन शोध और खोज को केंद्र में रखकर महायुग उपन्यास-त्रयी लिखा गया है। ‘हिमयुग में प्रेम’ तीन उपन्यासों की शृंखला का दूसरा उपन्यास है। होमो इरेक्टस और अन्य प्रजातियों के संघर्ष के बीच उन दिनों संसार में सांस्कृतिक विकास केे साथ कई नवीन प्रयोग हुए। इन्हीं लोगों ने पहली बार पालनौका, हिमवाहन और चक्के के साथ विविध अस्त्रों का निर्माण किया। परग्रहियों ने होमो सेपियंस के डीएनए का पुनर्लेखन किया। क्रोनोवाइजर सिद्धांत के आधार पर कुछ विज्ञानियों और पुराविदों ने समुद्र की गहराइयों से जीरो पॉइंट फील्ड में संरक्षित ध्वनियों को संगृहीत कर उसे फिल्टर किया। कड़ी मेहनत के बाद उनकी भाषा को डिकोड किया गया और उसे इंडस अल्ट्रा कंप्यूटर पर चित्रित किया गया। उनकी आवाजों से ही बत्तीस हजार साल पहले भारत के प्रथम ज्ञात पूर्वज की पूरी कहानी सामने आई।"

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