सुनो गौऱ से धरतीवासियों,
धरती के चीत्कार को,
आकुल,विकल,कही शिथिल पड़ी है,
खोती अपने आसार को।
मांग रही है फिर वेदी पर,
उन बलिदानी सपुतों को,
किया आजाद जिसने मां को,
उनके कपुतो को।
वही कपुत आज मां से दगा करते हैं,
भ्रमित कर युवाओं को,
आतंकवाद के बीज बोते है।
कह दो उन से सताए ना
किसी गरीब लाचारो को,
करे ना विवश,क्षतिग्रस्त,
उनके विचारों को,
नही तो उनके रुदन से,
भीषण सिंह नाॅद गुंजेंगें,
किये आॅग्लो से रक्षा जो,
मर्दन को जाग उठेंगें।
काॅप उठेंगी दिशाएं,
धरती रंग बदलेगी।
हुंकारों से ब्रह्मांड डोलेगा,
अंगारों की गंगा बहेगी।
बाहुबलो से उनके पर्वत खण्डित होगा,
पाप के नगरी में फिर,
सत्य संचारित होगा।
कर रहे अठ्ठहास आज जो,
ऐसा हस्र करेंगे,
प्राण उनके बदन ग्रहण से,
सात जन्म डरेंगें।
पाप मुक्त करने धरा,घर-घर
बोंस,भगत जन्मेंगें,
असत्य के श्रृंगालों पर जब,
सत्यवादी सिंह टुटेंगें,
पल भर में गिनती उनकी,
छिन्न-भिन्न कर देंगें।
संभल जाएं वो नेता भी जो,
आतंक परोक्ष खडे़ हैं,
सरल छवि बनाकर, हाथ
भ्रष्टाचार की डोर पकड़े हैं।
यह नही कोई प्रार्थना बल्कि,
भारतीयों की जन गर्जन है,
जिनमें सामर्थ करने को,
पाप मुक्त भू-अर्जन है।।
--निशांत